यह कार्यक्रम बताता है कि कैसे अनियमित बारिश, सूखा और बाढ़ किसानों की आजीविका, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और समग्र जीवन गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। यह श्रोताओं को अपने अनुभव साझा करने और समाधान सुझाने के लिए आमंत्रित करता है, जिससे जागरूकता बढ़ाने और सामुदायिक समर्थन को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है।

पानी में आर्सेनिक, लोह तत्व और दूसरे घातक पदार्थों की मात्रा महिलाओं के स्वास्थ्य पर सबसे बुरा असर कर रही है और फिर यही असर गर्भपात, समय से पहले बच्चे का जन्म या फिर कुपोषण के रूप में सामने आ रहा है. साथियों, हमें बताएं कि आपके परिवार में अगर कोई गर्भवति महिला या नवजात शिशु या फिर छोटे बच्चे हैं तो उन्हें पीने का पानी देने से पहले किस प्रकार साफ करते हैं? अगर डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों और महिलाओं को पीने का साफ पानी दें, तो आप उसकी व्यवस्था कैसे कर रहे हैं? क्या आंगनबाडी केन्द्र, एएनएम और आशा कार्यकर्ता आपको साफ पानी का महत्व बताती हैं? और ये भी बताएं कि आप अपने घर में किस माध्यम से पानी लाते हैं यानि बोरवेल, चापाकल या कुएं और तालाबों से?

साथियों, आपके यहां पानी के प्रदूषण की जांच कैसे होती है? यानि क्या सरकार ने इसके लिए पंचायत या प्रखंड स्तर पर कोई व्यवस्था की है? अगर आपके क्षेत्र में पानी प्रदूषित है तो प्रशासन ने स्थानीय जनता के लिए क्या किया? जैसे पाइप लाइन बिछाना, पानी साफ करने के लिए दवाओं का वितरण या फिर पानी के टैंकर की सुविधा दी गई? अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो आप कैसे पीने के पानी की सफाई करते हैं? क्या पानी उबालकर पी रहे हैं या फिर उसे साफ करने का कोई और तरीका है? पानी प्रदूषित होने से आपको और परिवार को किस किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं?

लू लगने के लक्षण और घरेलू उपचार के साथ साथ सावधानियां और बचाव के तरीके, डॉक्टरी सलाह के साथ गर्मी से निपटने की तैयारियां। क्या आपने भीषण गर्मी यानी लू लगने के ऐसे लक्षण खुद में या अपने परिवार, दोस्त या पड़ोसी में देखे हैं? अगर हाँ, तो आपने या उन्होंने ऐसे में क्या कदम उठाए? भीषण गर्मी से जुड़ी और किस तरह की जानकारी आप सुनना चाहेंगे?

कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की स्वीकारोकती के बाद सवाल उठता है, कि भारत की जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? इतनी जल्दबाजी मंजूरी देने के क्या कारण था, क्या उन्होंने किसी दवाब का सामना करना पड़ रहा था, या फिर केवल भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है। जिसके लिए फार्मा कंपनियां अक्सर कटघरे में रहती हैं? मसला केवल कोविशील्ड का नहीं है, फार्मा कंपनियों को लेकर अक्सर शिकायतें आती रहती हैं, उसके बाद भी जांच एजेंसियां कोई ठोस कारवाई क्यों नहीं करती हैं?

टीबी बीमारी को क्षयरोग के नाम से भी जाना जाता है. हर वर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस के रूप में मनाया जाता है। टीबी एक गंभीर बीमारी है जिसे लेकर आज भी लोगों के बीच कई सारी अफवाह फैली हुई हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन इस दिन दुनिया भर में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित करता है ताकि लोग इसके प्रति जागरूक हो। हर साल विश्व क्षयरोग दिवस एक निर्धारित थीम के तहत मनाया जाता है। अभी 2024 की थीम यस! वी कैन एंड टीबी! इस थीम का उद्देश्य है टीबी उपचार के प्रति जागरूकता बढ़ाना। मरीज़ों और उनके परिवारों को प्रेरणा देना की टीबी का जड़ से उपचार संभव है और वह हार न मानें। टीबी का खात्मा हम सब मिलकर कर सकते हैं। इसलिए हमें इससे बचने के लिए विभिन्न उपाय करने चाहिए जैसे टीकाकरण संतुलित आहार लेना और एक्टिव लाइफस्टाइल को शामिल करना चाहिए ।खांसते और छींकते समय चेहरे को साफ नैपकिन या रुमाल से कवर करना और इस्तेमाल के बाद इन चीजों को कूड़े में डाल देने की आदत अपनाने चाहिए ।तो दोस्तों हमें अपनों और खुद का ख्याल रखना है और टीबी से बचाव के उपाय को अपनाना है तभी तो हम टीबी को हराएंगे और देश को जिताएंगे।

हम सभी रोज़ाना स्वास्थ्य और बीमारियों से जुड़ी कई अफवाहें या गलत धारणाएं सुनते है। कई बार उन गलत बातों पर यकीन कर अपना भी लेते हैं। लेकिन अब हम जानेंगे उनकी हकीकत के बारे में, वो भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मदद से, कार्यक्रम सेहत की सच्चाई में। याद रखिए, हमारा उद्देश्य किसी बीमारी का इलाज करना नहीं, बल्कि लोगों को उत्तम स्वास्थ्य के लिए जागरूक करना है। सेहत और बीमारी को लेकर अगर आपने भी कोई गलत बात या अफवाह सुनी है, तो फ़ोन में नंबर 3 दबाकर हमें ज़रूर बताएं। हम अपने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से जानेंगे उन गलत बातों की वास्तविकता, कार्यक्रम सेहत की सच्चाई में।

हम सभी रोज़ाना स्वास्थ्य और बीमारियों से जुड़ी कई अफवाहें या गलत धारणाएं सुनते है। कई बार उन गलत बातों पर यकीन कर अपना भी लेते हैं। लेकिन अब हम जानेंगे उनकी हकीकत के बारे में, वो भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मदद से, कार्यक्रम सेहत की सच्चाई में। याद रखिए, हमारा उद्देश्य किसी बीमारी का इलाज करना नहीं, बल्कि लोगों को उत्तम स्वास्थ्य के लिए जागरूक करना है।सेहत और बीमारी को लेकर अगर आपने भी कोई गलत बात या अफवाह सुनी है, तो फ़ोन में नंबर 3 दबाकर हमें ज़रूर बताएं। हम अपने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से जानेंगे उन गलत बातों की वास्तविकता, कार्यक्रम सेहत की सच्चाई में।

खान-पान और जीवन शैली में सुधार कर मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता - विश्व मोटापा दिवस पर आयोजित हुई गोष्ठी लखनऊ, 5 मार्च 2024। विश्व मोटापा दिवस के अवसर पर लखनऊ एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और लखनऊ एडोलसेंट हेल्थ एकेडमी द्वारा सोमवार को शहर के होटल में गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का विषय था "चलो बच्चों और किशोरों पर मोटापे और इसके प्रभावों के बारे में बात करते हैं"। इस गोष्ठी के आयोजन का उद्देश्य बच्चों और किशोरों को मोटापे की बढ़ती महामारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इस मौके पर इंडियन एकेडमी ऑफ पीड़ियाट्रिक्स(आईएपी) की अध्यक्ष डा. पियाली भट्टाचार्य ने बताया कि आईआईएपी का संदेश है कि जीवन शैली में छोटे-छोटे बदलाव कर मोटापे के खिलाफ लड़ाई में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। लखनऊ एकडेमी ऑफ इंडियन पीडियाट्रिक्स की सदस्य डॉ. निर्मला जोशी ने बताया कि हाल के अध्ययनों के अनुसार भारत में बचपन के मोटापे की दर में वृद्धि देखी गई है। जिसे कि खान-पान और जीवन शैली में सुधार कर नियंत्रित किया जा सकता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार जनपद में पाँच साल तक के दो फीसद बच्चों का वजन उनकी लंबाई के अनुपात में अधिक है अर्थात वह मोटे हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. उत्कर्ष बंसल ने बताया कि बढ़ते मोटापे का श्रेय बड़े पैमाने पर गतिहीन जीवन शैली और अस्वास्थ्यकर आहार को दिया जाता है। लंबे समय तक बैठकर काम करना, काम के समय अनिश्चित होना और स्क्रीन टाइम अधिक होना भी मोटापे के कारण हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विजया मोहन ने सुधार के लिए पूरे परिवार के भोजन और जीवन शैली की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मोटापा डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हृदय रोगों का भी कारण है, जो बच्चे और किशोर मोटापे की समस्या से ग्रसित होते हैं उनमें आगे चलकर इन बीमारियों के होने की संभावना होती है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. लोकेश ने बताया आज के समय में लोग अपने भोजन में 11 फीसद तक जंक फूड ले रहे हैं जिसमें नमक, चीनी और प्रोसेस्ड तेल की अत्यधिक मात्रा होती है। जिनकी मोटापा बढ़ाने में अहम भूमिका है। डॉ सलमान ने कहा कि मोटापे को दूर भगाने के लिए प्रतिदिन पाँच तरह के फल और सब्जी खाएं, दो घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम न हो | एक घंटे व्यायाम या शारीरिक गतिविधि हो और शर्करा युक्त पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल न हो। डा. संजय निरंजन ने बताया कि क्लीनिक और संस्थानों में स्वस्थ जीवन शैली को बनाए रखने के महत्व के बारे में माता-पिता, बच्चों और किशोरों को जागरूक करा जायेगा। कार्यक्रम में डॉ शालिनी भसीन, डॉ एकांश, डॉ आशीष वर्मा, डॉ अमित रस्तोगी, डॉ अभिषेक बंसल और अन्य बाल रोग विशेषज्ञ शामिल थे।

लखनऊ विश्वविद्यालय में 123 लोगों ने फाइलेरियारोधी दवा का किया सेवन इंकार किए हुए 46 लोगों को फाइलेरिया पेशेंट प्लेटफ़ॉर्म के सदस्यों ने दवा खाने के लिए किया राजी लखनऊ, 5 मार्च 2024 जनपद में 10 फरवरी से चल रहे सर्वजन दवा सेवन अभियान के क्रम में मंगलवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग में फाइलेरियारोधी दवा का सेवन कराने के लिए बूथ लगाया गया | जिसमें 123 लोगों ने फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन किया | बूथ का उद्घाटन इतिहास विभाग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अनिल कुमार एवं प्रोफेसर आनंद पांडे ने स्वयं दवा सेवन करके किया । जिला मलेरिया अधिकारी डा. रितु श्रीवास्तव ने बताया कि सोमवार को भी लखनऊ विश्वविद्यालय के वाणिज्य संकाय में बूथ लगाया गया था जिसमें लोगों ने फाइलेरियारोधी दवा का सेवन किया था | फाइलेरिया उन्मूलन में लखनऊ विश्वविद्यालय की यह अच्छी पहल है | उन्होंने बताया कि इस मौके पर उपस्थित शिक्षकों और विद्यार्थियों को फाइलेरिया से बचाव और कारणों की जानकारी दी गई कि यह मच्छर के काटने से होती है और इस बीमारी से बचाव के उपाय हैं फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन करना और मच्छरों से बचना | साल में एक बार और लगातार तीन साल तक फाइलेरियारोधी दवा का सेवन कर इस बीमारी से बचा जा सकता है | इस बीमारी का उन्मूलन इसलिए जरूरी है कि यह संक्रामक बीमारी है | इस बीमारी के लक्षण संक्रमण होने के 10 से 15 साल बाद दिखाई देते हैं | तब तक संक्रमित व्यक्ति अन्य स्वस्थ लोगों को संक्रमित करता रहता है | जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि आगामी दिनों में विश्वविद्यालय के अन्य विभागों में भी फाइलेरियारोधी दवा का सेवन कराने के लिए बूथ लगाए जायेंगे । इस मौके पर स्वास्थ्य विभाग से डॉ. नेहा प्रताप , वरिष्ठ मलेरिया इन्सपेक्टर गौतम एवं मलेरिया इन्सपेक्टर ए०के०सिंह ,पीसीआई से असिस्टेंट स्टेट प्रोग्राम मैनेजर विकास द्विवेदी, जिला समन्वयक आकाश द्विवेदी और निशांत सिंह मौजूद रहे । इसी क्रम में सोमवार को मोहनलालगंज के भदेसुवा गाँव में फातिमा भट्ठा में फाइलेरियारोधी दवा खिलाई गई | इस मौके पर 46 लोगों ने फाइलेरियारोधी दवा का सेवन करने से इंकार कर दिया | ऐसे में फाइलेरिया नेटवर्क के सदस्य बबलू चौरसिया और फाइलेरिया पेशेंट प्लेटफ़ॉर्म की सदस्य बिंदा देवी ने लोगों को समझाया और कहा कि यह लाइलाज बीमारी है |एक बार हो जाती है तो फिर ठीक नहीं होती है | हम लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं और बहुत ही दिक्कतों का सामना कर रहे हैं | हमने दवा नहीं खायी थी लेकिन अब तो फाइलेरिया से बचाव के लिए आपके घर पर दवा खिलाई जा रही है तो मना न करें | दवा खाएं | जिससे कि फाइलेरिया जैसी बीमारी से बचाव हो सके | यह बीमारी जान तो नहीं लेती है लेकिन जीवन दूभर कर देती है | इन बातों का प्रभाव लोगों पर हुआ और 46 लोगों ने फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन किया |