सरकार द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने और गांवों में पीएम आवास योजना के तहत 70 प्रतिशत से ज्यादा मकान महिलाओं को देने से देश में महिलाओं की गरिमा बढ़ी तो है। हालांकि, इन सबके बावजूद कुछ ऐसे कारण हैं जो महिलाओं को जॉब मार्केट में आने से रोक रहे हैं। भारत में महिलाओं के लिए काम करना मुश्किल समझा जाता है. महिलाएं अगर जॉब मार्केट में नहीं हैं, तो उसकी कई सारी वजहें हैं, जिनमें वर्कप्लेस पर काम के लिए अच्छा माहौल न मिल पाना भी शामिल है . दोस्तों, हर समस्या का समाधान होता है आप हमें बताइए कि *----- नौकरी की तलाश में महिलाओं को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। *----- आपके अनुसार महिलाओं के नौकरी से दूर होने के प्रमुख कारण क्या हैं? *----- महिलाओं को नौकरी में बने रहने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
फतेहपुर,।अमृत भारत रेलवे स्टेशन योजना के तहत कराए जाने वाले काम को गति दिए जाने के लिए पीआरएस (रिजर्वेशन) काउंटर को शिफ्ट कराया जा चुका है। जिसके चलते अब यात्रियों को आरक्षित व अनारक्षित टिकट एक ही स्थान से प्राप्त हो सकेंगी। वहीं आरक्षण कार्यालय की बिल्डिंग को जमींदोज करवाए जाने के साथ ही काम को भी गति मिल सकेगी। रविवार को अनारक्षित टिकट काउंटर में ही आरक्षित टिकट काउंटर को शिफ्ट किए जाने की कवायदों को वीराम लग गया। दरअसल काम को गति दिए जाने के लिए आरक्षित टिकट खिड़की को अनारक्षित टिकट खिड़की के पास ही शिफ्ट करा दिया गया है। सीएमआई महेंद्र गुप्ता ने बताया कि आरक्षण कार्यालय की बिल्डिंग के जमींदोज होने के बाद काम को गति दिए जाने की बात सम्बंधित द्वारा कहे जाने के चलते इसे तत्काल शिफ्ट कराया गया है।
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बीते दिनों महिला आरक्षण का बहुत शोर था, इस शोर के बीच यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए की अपने को देश की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाले दल के आधे से ज्यादा भू-भाग पर शासन होने के बाद भी एक महिला मुख्यमंत्री नहीं है। इन सभी नामों के बीच ममता बनर्जी इकलौती महिला हैं जो अभी तक राजनीति में जुटी हुई हैं। वसुंधरा के अवसान के साथ ही महिला नेताओं की उस पीढ़ी का भी अवसान हो गया जिसने पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय तक महिलाओं के हक हुकूक की बात को आगे बढ़ाया। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जबकि देश में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की बात की जा रही है। एक तरफ महिला नेताओं को ठिकाने लगाया जा रहा है, दूसरी तरफ नया नेतृत्व भी पैदा नहीं किया जा रहा है।
सवाल है कि जिस कानून को इतने जल्दबाजी में लाया जा रहा हैं उसके लागू करने के लिए पहले से कोई तैयारी क्यों नहीं की गई, या फिर यह केवल आगामी चुनाव में राजनीतिक लाभ पाने के दृष्टिकोण से किया जा रहा है।