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यूपी के फतेहपुर जिले की सदर नगरपालिका परिषद की घोर लापरवाही देखने को मिली भीषण ठंड में सफाई कर्मचारी झाड़ू लगाने को मजबूर है और सफाई कर्मचारियों को नगर पालिका द्वारा अभी तक ठंड से बचाव के लिए जैकेट और गर्म कंबल तक वितरित नहीं किए गए जिसके कारण सफाई कर्मचारी ठंड में ठिठुरते हुए गली-गली झाड़ू लगाने को मजबूर हैं और अपनी आप भी थी सुनने को मजबूर हैं। फतेहपुर जिले के नगर पालिका परिषद फतेहपुर की बात की जाए तो यहां पर 31 वार्ड शहर में है इन वार्डो में सफाई कर्मचारी नियुक्त हैं जो सुबह 5:30 से गालियों तथा रोड़ों की सफाई करते हैं, जिला प्रशासन की जिम्मेदारों ने सफाई कर्मचारियों को जिम्मेदारी तो सोप लेकिन खुद जिम्मेदारी से लापरवाही करते नजर आए भीषण ठंड में रोजी-रोटी की खातिर ठेकेदारी पर लगे सफाई कर्मचारियों की ठंड से बचाव की व्यवस्था नहीं की गई नगर पालिका परिषद फतेहपुर और ना ही जिला प्रशासन द्वारा सफाई कर्मचारियों को अभी किसी तरीके का ठंड से बचाव के लिए जैकेट और कंबल का वितरण नहीं किया गया नगर पालिका परिषद फतेहपुर अधिशासी अभियंता से इस विषय में बात की गई तो उन्होंने बताया कि बहुत जल्द ही सफाई कर्मचारियों के लिए एक कैंप लगाकर ठंड से बचाव के लिए कंबल वितरित किए जाएंगे।

फतेहपुर/खागा,। जल ही जीवन जल सा जीवन, जल्दी ही जल जाओगे, अगर बची नहीं जल की बूंदें, कैसे प्यास बुझाओगे... किसी कवि की लिखी यह चंद लाइनें लोगों की समझ में आती नहीं दिख रही हैं क्योंकि जिले में पानी की बर्बादी का आलम थम नहीं रहा है। अपनी जेबें भरने के लिए पानी के कारोबारी रोज लाखों लीटर पानी नालियों में बहा रहे हैं। कई सालों से जिले में पानी बेचने का धंधा जोर पकड़ रहा है। एक के बाद एक दर्जनों आरओ वाटर प्लान्टों के जरिए रोजाना धरती की कोख से अरबों लीटर पानी निकाला जा रहा है। जिससे जनपद में पहले से ही गिर रहे भूजल स्तर को और अधिक खतरा पैदा हो गया है। सूत्र बताते हैं कि आरओ वाटर प्लान्टों को लगाने के पहले न तो जल संरक्षण की मानक अनुसार व्यवस्था की गई और न ही नियमों व दूसरे मानकों का पालन किया गया। घर घर पानी की सप्लाई कर कारोबारी अपनी माली हालत तो दुरूस्त कर रहे हैं लेकिन पर्यावरण को गंभीर बीमारी दे रहे हैं। तीनों तहसीलों में स्थापित किए गए वाटर प्लांटों से रोजाना करोड़ों लीटर पानी जल संरक्षण की उचित व्यवस्था नहीं होने से नालियों में बह रहा है। 70 फीसदी सिंचाई भूगर्भ जल पर निर्भर सूबे के दूसरे जिलों की तरह फतेहपुर में भी सिचाई के साधनों में भूगर्भ जल का अत्यधिक महत्व है। अनुमान के मुताबिक करीब सत्तर फीसदी सिचाई भूगर्भ जल साधनों द्वारा की जाती है। नहरी में पानी की कमी और नहर आच्छादित क्षेत्रों की कमी के कारण खेतों की सिचाई के लिए निजी और सरकारी नलकूपों पर अधिक निर्भरता है। मानसूनी बारिश कम होने पर यह निर्भरता काफी अधिक बढ़ जाती है। पेयजल व्यवस्था तो सौ फीसदी भूगर्भ जल पर ही निर्भर है। कम लागत में होती अधिक कमाई, बढ़ रहे प्लांट आरओ वाटर प्लांटों की संख्या में बढ़ोतरी का कारण कम पूंजी में अधिक कमाई को माना जा रहा है। दो हजार लीटर से दस हजार लीटर तक के वाटर प्लांट करीब पांच लाख से पंद्रह लाख तक की पूंजी में स्थापित किए जा सकते हैं। इन प्लान्टों में पूंजी का एक बार निवेश करने के बाद रखरखाव और मरम्मत की अधिक आवश्यकता नहीं होती है।

फतेहपुर खागा। नगर से गुजरने वाली कटोंघन माइनर धीरे धीरे नगर के लिए अभिशाप बनती जा रही है। स्वच्छता पर दाग लगा रही यह नहर अब न तो किसानों के लिए और न ही नगरवासियों के लिए मुफीद साबित हो रही है। सिंचाई विभाग द्वारा कई बार लाखों खर्च कर कराई गई सफाई भी इसकी दशा सुधारने में नाकाम रही। गाहे बगाहे ही इस नहर में पानी का बहाव देखा गया। दशकों पहले कटोंघन माइनर क्षेत्रीय किसानों के लिए काफी मददगार थी। पुराने लोग बताते हैं कि सालों पहले इस नहर में पानी का बहाव था जो फसलों की सिंचाई के काम आता था लेकिन नई पीढ़ी ने इस नहर में कभी कभार ही पानी का बहाव देखा है। नहर में घास, गाद व कूड़ा जमा हो गया है। कूड़े के सड़ने के चलते व पानी रूकने से नहर से बदबू व सड़ांध आने लगती है। बीते सालों में सिंचाई विभाग ने लाखों रूपए खर्च कर इस नहर की सफाई भी कराई लेकिन वह किसी काम नहीं आई। बदबू व सड़ांध की शिकायत देख नगरपंचायत ने भी सिंचाई विभाग को पत्र लिखा था लेकिन कुछ खास हासिल नहीं हुआ।