फतेहपुर/खागा,। प्रदूषण को लेकर दीवारों व स्क्रीनों पर तमाम जागरूकता नारे दिखते हैं जमीन पर यह नारे दम तोड़ते दिखते हैं। जनता व जिम्मेदार प्रदूषण की विकराल समस्या को लेकर गंभीर नहीं हैं। नगर निकायों में स्थापित किए गए एमआरएफ सेण्टर जहां पूरी क्षमता से कार्य करते नहीं दिख रहे हैं। वहीं बिना एनओसी संचालित करीब 50 फीसदी फैक्ट्रियां जहरीला धुआं उड़ा रहीं है। जल,जमीन व हवा में प्रदूषण के लिए दोआबा में हर मौसम में अलग -अलग कारक जिम्मेदार हैं। गर्मी में सड़कों से उड़ती धूल जिम्मेदार है तो वहीं सर्दी में धुएं के चलते वातावरण जहरीला होने लगता है। बरसात में नदी व नालों से जल प्लवन प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बनता है। शासन ने प्रदूषण में कमी लाने व रिसाइकिल करने के लिए निकायों में लाखों रुपए की लागत से एमआरएफ सेण्टर बनाए हैं लेकिन इसके बावजूद शहरों में कूड़ा सड़कों पर दिख ही जाता है। कूड़े का प्रबंधन करने की बजाए तमाम जगहों पर उसे जलाकर वायु प्रदूषण को निमंत्रित किया जा रहा है। प्रदूषण का कृषि का दुष्प्रभाव मौसम एवं कृषि विज्ञानी वसीम खान बताते हैं कि कृषि पर प्रदूषण का काफी असर होता है। जब प्रदूषण अधिक होता है तो सूर्य की किरणें फसलों तक पहुंच नहीं पाती हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है। फसल की गुणवत्ता घटती है और उपज में कमी आती है। धुएं में उड़ रहे प्रदूषण नियंत्रण के नियम दोआबा में मलवां से औंग तक बड़ी संख्या में संचालित फैक्ट्रियों में अधिकतर बिना एनओसी के संचालित हैं। प्रदूषण नियंत्रण के नियम इन फैक्ट्रियों में धुआं बन उड़ रहे हैं। टायर जलाने वाली तीन फैक्ट्रियों से सारी हदें पार कर दी। बिना एनओसी दो फैक्ट्रियों को संचालित किए जाने की तैयारी है। प्रदूषण विभाग के मुताबिक चौडगरा औंग के बीच सिर्फ नौ फैक्ट्रियों को एनओजी जारी है। मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा जल,जमीन व हवा में व्याप्त प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद गंभीर खतरा है। हथगाम सीएचसी के डॉ. एसएस यादव बताते हैं कि प्रदूषण के चलते टायफाईड, पीलिया, हैजा व गैस्ट्रिक सम्बन्धी बीमारियों के पनपने की संभावना रहती है। सांस सम्बन्धी रोगों व अस्थमा के मरीजों के लिए वायु प्रदूषण बेहद घातक है। खतरनाक लेवल तक पहुंची हवा की गुणवत्ता बरसात होने के कारण फिलहाल दोआबा का एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) संतोषजनक है लेकिन यह अब भी स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। बीते महीनों में एक्यूआई का स्तर 175 से 200 के आसपास था। स्वास्थ्य के नजरिए से एक्यूआई का लेवल 50 होना चाहिए।