भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने

दोस्तों, हमारे यह 2 तरह के देश बसते है। एक शहर , जिसे हम इंडिया कहते है और दूसरा ग्रामीण जो भारत है और इसी भारत में देश की लगभग आधी से ज्यादा आबादी रहती है। और उस आबादी में आज भी हम महिला को नाम से नहीं जानते। कोई महिला पिंटू की माँ है , कोई मनोज की पत्नी, कोई फलाने घर की बड़ी या छोटी बहु है , कोई संजय की बहन, तो कोई फलाने गाँव वाली, जहाँ उन्हें उनके मायके के गाँव के नाम से जाना जाता है। हम महिलाओ को आज भी ऐसे ही पुकारते है और अपने आप को समाज में मॉडर्न दिखने की रीती का निर्वाह कर लेते है। समाज में महिलाओं की पहचान का महत्व और उनकी स्थिति को समझने की आवश्यकता के बावजूद, यह बहुत दुःख कि बात है आधुनिक समय में भी महिलाओं की पहचान गुम हो रही है। तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----आप इस मसले को लेकर क्या सोचते है ? *-----आपके अनुसार से औरतों को आगे लाने के लिए हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है *-----साथ ही, आप औरतों को किस नाम से जानते है ?

किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

दुनिया भर में हर साल 15 मार्च को उपभोक्ता के हक की आवाज़ उठाने और ग्राहको को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक बनाने के लिए "विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस" मनाया जाता है। 15 मार्च, 1983 में उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने की शुरूआत कंज्यूमर्स इंटरनेशनल नाम की संस्था ने की थी।आपको बता दे की हर साल विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के लिए एक थीम बनाई जाती है कंज्यूमर्स इंटरनेशनल ने इस साल की थीम " उपभोक्ताओं के लिए निष्पक्ष और जिम्मेदार एआई "को चुना है। मोबाइल वाणी के पुरे परिवार की ओर से आप सभी को "विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस"की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

सरकार को भारत रत्न देने के अलावा किसानों को उनके अधिकार भी देने चाहिए , आखिर उनकी मांग भी तो बहुत छोटी सी है कि उन्हें उनकी फसलों का बेहतर मूल्य मिले। हालांकि किसानों की इस मांग का आधार भी एम एस स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें हैं जो उन्होंने आज से करीब चार दशक पहले दी थीं। इन चार दशकों में न जाने स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने का वादा करके न जाने कितनी सरकारें आईं और गईं, इनमें वर्तमान सरकार भी है जिसने 2014 के चुनाव में इन सिफारिशों को लागू करने का वादा प्रमुखता से किया था। -------दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, क्या आपको भी लगता है कि किसानों की मांगो को पूरा करने की बजाए भारत रत्न देकर किसानों को उनके अधिकार दिलाए जा सकते हैं? --------या फिर यह भी किसानों को उनके अधिकारों को वंचित कर उनके वोट हासिल करने का प्रयास है.

हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है लेकिन लड़कियों को इसके लिए कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार घर के काम के बोझ के साथ स्कूल के बस्ते का बोझ उठाना पड़ता है तो कभी लोगों की गंदी नज़रों से बच-बचा के स्कूल का सफर तय करना पड़ता है। जैसे-तैसे स्कूल पहुंचने के बाद भी यौन शोषण और भावनात्मक शोषण की अलग चुनौती है जो रोज़ाना उनके धैर्य और हिम्मत की परीक्षा लेती है। ऐसे में लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन के साथ साथ समाज की भी है। तब तक आप हमें बताइए कि * -----लड़कियों के स्कुल छोड़ने के या पढ़ाई पूरी ना कर पाने के आपको और क्या कारण नज़र आते है ? * -----आपके हिसाब से हमें सामाजिक रूप से क्या क्या बदलाव करने की ज़रूरत है , जिससे लड़कियों की शिक्षा अधूरी न रह पाए।

भारतीय संसद के इतिहास में न विपक्ष का हंगामा नया है और न उनका सदन से निष्कासन, हाल के सालों में इस तरह के निलंबन की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं, इसमें भी निलंबन उनका होता है जो सदन में अपनी बात पुरजोर तरीके से रखकर सरकार का विरोध करते हैं। लोकतंत्र और संसद जो सहमति और असहमति का मिला जुला रूप हैं, उसमें इस तरह की कार्रवाईयों का क्या औचित्य है?

इसके बरक्स एक और सवल उठता है कि क्या सरकारें चाहती हैं कि वह लोगों का खाने-पीने और पहनने सहित सामान्य जीवन के तौर तरीकों को भी तय करें? या फिर इस व्यवसाय को एक धार्मिक समुदाय को निशाना बनाने के लिए इस तरह के आदेश जारी किये जा रहे हैं। सरकार ने इस आदेश को जारी करते हुए इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि उसके एक आदेश से कितने लोगों की रोजी रोटी पर असर पड़ेगा

हमारे पुरुष प्रधान समाज में बच्चे और महिलाएं हिंसा का आसानी से शिकार हो जाते है। ऐसा ही हाल ट्रांसजेंडर यानी तीसरे जेंडर का भी है। ये वो लोग है जो खुद को ना पुरुष और ना ही महिला मानते हैं। इनके हक़ के लिए संघर्षरत है पिया कपूर, जो खुद भी एक किन्नर है। पिया का कहना है कि लोग उन्हें भी इंसान समझे। इसके लिए समाज की सोच और कानून में बदलाव बहुत ज़रूरी है।तीसरे जेंडर के लिए लोगों की सोच और भावनाएं कैसे सुधारी जा सकती है? क्या स्कूली शिक्षा के माध्यम से इस समुदाय के लोगों का जीवन बेहतर हो सकता है? अपने विचार और अनुभव हमें बताने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3

बीते दिनों महिला आरक्षण का बहुत शोर था, इस शोर के बीच यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए की अपने को देश की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाले दल के आधे से ज्यादा भू-भाग पर शासन होने के बाद भी एक महिला मुख्यमंत्री नहीं है। इन सभी नामों के बीच ममता बनर्जी इकलौती महिला हैं जो अभी तक राजनीति में जुटी हुई हैं। वसुंधरा के अवसान के साथ ही महिला नेताओं की उस पीढ़ी का भी अवसान हो गया जिसने पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय तक महिलाओं के हक हुकूक की बात को आगे बढ़ाया। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जबकि देश में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की बात की जा रही है। एक तरफ महिला नेताओं को ठिकाने लगाया जा रहा है, दूसरी तरफ नया नेतृत्व भी पैदा नहीं किया जा रहा है।