गर्भवती के बेहतर इलाज मुहैया कराने और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में अब अस्पतालों की मदद ली जाएगी। प्रत्येक प्राइवेट क्लीनिक और नर्सिंग होम को रोजाना एक तय फॉर्मेट पर सीएमओ को सूचना देनी होगी। इसके आधार पर ही गर्भवती और बच्चों की इलाज के लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। सरकारी अस्पतालों में गर्भवतियों और शिशुओं के इलाज का रिकॉर्ड तो रहता है, लेकिन निजी अस्पतालों में इलाज करवाने वाले मरीजों का कोई रिकॉर्ड स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं होता। कई बार बच्चों और गर्भवतियों की मौत हो जाती है, लेकिन असली कारण पता नहीं चल पाता है। अब इनके मौत का कारण जानने के लिए प्रत्येक अस्पताल को रोजाना इलाज कराने वाले मरीजों की जानकारी देनी होगी। एक फॉर्मेट पर चिकित्सक इसकी सूचना भरकर सीएमओ को उपलब्ध कराएंगे।