पिछले कुछ वर्षों से सितंबर से लेकर शुरुआती दिसंबर तक डेंगू बुखार का भयानक प्रकोप देखने को मिलता आ रहा है। प्रतिवर्ष इस बुखार की तीव्रता, दायरा और मरने वालों की संख्या बीते वर्ष से ज्यादा देखने को मिलती है। सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें लेकिन हमारे बिसवां क्षेत्र में ही इस वर्ष डेंगू एक महामारी के रूप में देखने को मिल रहा है। शायद ही ऐसा कोई घर हो जिसमे का कोई भी सदस्य इस बुखार की चपेट में न आया हो। सिर्फ बिसवां क्षेत्र में ही बीते तीन वर्षों में यह बुखार सैकड़ो जाने ले चुका है। हालांकि सरकारी आंकड़ों में इस बुखार से मरने वालों की संख्या उतनी ही दर्ज होगी जितने में सरकार की बदनामी न हो। लोगों के मरने से लापरवाह सरकार इसकी रोकथाम के लिए सिर्फ साफ सफाई रखने के कुछ प्रवचन दोहरा देती है और नगर पालिका थोड़ी बहुत दवाइयां (मच्छर मारने की दवा) का छिड़काव कर देती है और बस सरकार समझती है कि हमारा फर्ज पूरा हुआ, आदमी मरे या जिंदा रहे। लेकिन इस बुखार के साथ-साथ आप एक और दुष्चक्र में फंस जाते हैं, वह है डॉक्टर्स की कमीशन खोरी। आपके जैसे ही बुखार आएगा आपको डॉक्टर तुरंत जांच के लिए लिखेंगे और जांच में आपके डॉक्टर का 50% कमिशन बा ईमानदारी तय होता है जो सूरज ढलने के साथ ही प्रत्येक डॉक्टर के पास लिफाफे में पैक होकर पहुंच जाता है। हालांकि हम यह नहीं कह रहे हैं कि इस कमीशन खोरी में सभी डॉक्टर्स शामिल है। कुछ बहुत अच्छे डॉक्टर भी हैं जो इस कमीशन खोरी से बिल्कुल दूर रहते हैं और अपने मरीज के प्रति बेहद ईमानदार होते हैं लेकिन यह सच है कि कमीशनखोर डॉक्टर्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कुकुरमुत्ते की तरह फैली पैथोलॉजी और डॉक्टर्स के बीच की इस कमीशन खोरी को एक साधारण व्यक्ति तो क्या पुलिस भी न तो पकड़ सकती है और न ही साबित कर सकती है क्योंकि जांच की फीस पैथोलॉजी वाला लेता है और वह उस फीस में से चुपचाप जांच लिखने वाले डॉक्टर को आधा पैसा बा ईमानदारी पहुंचा देता है। हां इस भ्रष्टाचार को अगर सीबीआई जांच हो तो जरूर पकड़ा जा सकता है, जो होने से रही। मतलब यह है कि एक तरफ, एक व्यक्ति जिंदगी मौत से जूझ रहा होता है दूसरी तरफ यह कमीशन खोर उसकी मजबूरी और बीमारी का फायदा उठाकर उसको खूब लूटते हैं। बहुत से मरीज तो इस कमीशनखोरी की वजह से कर्जदार तक हो जाते है। इस पूरी कमीशन खोरी की कहानी को सरकार और उसके प्रतिनिधि सभी जानते हैं लेकिन क्यों बोलें? क्यों लगाम लगाएं? जनता है मरने दो। देश की आबादी वैसे भी बहुत हो चुकी है।