किस्सा अटलजी का : 20 साल पहले धोती गिफ्ट करने वाले को पलभर में पहचान लिया मैं पल्लवी श्रीवास्तव सीतापुर मोबाइल वाणी से अटल बिहारी बाजपेयी, भारतीय राजनीति की एक ऐसी शख्सियत, जहां से राजनीति की नैतिकता की शुरूआत होती है। अटलजी का व्यक्तित्व हमेशा विराट रहा, उनके इरादे बुलंद रहे, संघर्षों में तपकर वह कुंदन बने, उनकी भाषाशैली का विपक्ष भी कायल रहा और उनके तीखे और कटाक्ष भरे भाषणों से विपक्ष हमेशा आहत होता भी रहा, लेकिन इन सब बातों से अलग अटलजी का सादगीभरा अंदाज भी उनके व्यक्तित्व की विशिष्ट पहचान है। ऐसा ही एक दिल को छू जाने वाला वाकया उज्जैन से 40 किलोमीटर दूर तराना कस्बे में हुआ था। यह वह समय था जब संघ अपनी पहचान बनाने के दौर से गुजर रहा था। अटलबिहारी बाजपेयी संघ के त्याग, तपस्या और आदर्शों की भट्टी में तपकर एक आदर्श स्वयंसेवक बने थे। यह 1960 की बात है जब संघ प्रचारक बनकर संघ के किसी काम के सिलसिले में वे तराना गए हुए थे। उस वक्त संघ प्रचारक किसी उचित जगह की तलाश कर वहां पर अपनी दिनचर्या व्यतीत करते थे। क्योंकि संघ कार्यालय के भवन उस समय बड़े नगरों में भी नहीं थे। ऐसे में तराना जैसे छोटे कस्बे में जाकर अटलजी ने अपना ठिकाना वहां के प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर जिसको कुंड का द्वारकाधीश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, को बनाया।