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गोरखपुर। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा सड़क सुरक्षा के संबंध में दिए गए निर्देशों के क्रम में 23 जनवरी 2024, नेताजी सुबाष चन्द्र बोस की जयंती के अवसर पर सड़क सूरक्षा संबंधी जागरूकता के उददेश्य से मानव श्रृंखला बनाए जाने एवं सड़क सुरक्षा संबंधी शपथ दिलाई जाने के लिए रामगढ़ ताल नौकायन से विशाल मानव श्रंखला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद रवि किशन शुक्ला द्वारा सड़क सुरक्षा के तहत शपथ दिलाई गई तथा दुर्घटनाओं में जनहानि को रोके जाने के संबंध में सड़क स्रक्षा नियरमों के पालन हेतु प्रेरित किया गया।कार्यक्रम में प्राप्त सूचना के अनुसार लगभग 4100 प्रतिभागि्यों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम में सेन्ट्रल एकेडमी गोरखपुर, राजकीय जूुबली इण्टर कालेज गोरखपुर, महाराणा गांधी इण्टर कालेज, डीएवी डिग्री कॉलेज, प्राथमिक विद्यालय जंगल सालिकराम, सर माउण्ट इण्टर कॉलेज, लिटिल स्कॉलर पैडलेगंज, इस्लामियां इण्टर कॉलेज,आत्मदीप इण्टर कॉलेज, तारामण्डल गोरखपुर, स्टॉर एकेडमी तारामण्डल आदि विदयालयों के छात्र-ात्राएं तथा विभिन्न विभागों के अधिकारी/ कर्मचारी उपस्थित थे।

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गोरखपुर। समाजवादी आंदोलन के पुरोधा 'छोटे लोहिया' स्व. जनेश्वर मिश्र जी की पुण्यतिथि पार्टी के बेतियाहाता स्थित कार्यालय पर जिलाध्यक्ष ब्रजेश कुमार गौतम की अध्यक्षता में मनाई गई संचालन कृष्ण कुमार त्रिपाठी ने किया नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी तथा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला जिलाध्यक्ष ब्रजेश कुमार गौतम ने कहा कि छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र ने हमेशा किसानों और गरीबों के लिए संघर्ष किया। वे कहते थे कि यह लड़ाई छूट गई तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। आज वे हमारे बीच होते तो रास्ता दिखाते। हमें समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना है। आनेवाले दिनों में फिर कड़ा मुकाबला होना है। जनेश्वर जी ने लोहिया जी के विचारों को आगे बढ़ाया। वे सरल ढंग से गूढ़ सिद्धांत समझा देते थे। देश में इतने बड़े कद का दूसरा नेता नहीं हुआ है। उन्होने अपने जीवन में समाजवाद को जिया था। डा0 लोहिया से उन्होने संघर्ष करना सीखा था अन्याय के खिलाफ लड़ाई में वे आगे रहते थे। संसद में वे जब भाषण देते थे तो दूसरे दलों के लोग भी उन्हें सुनने के लिए आ जाते थे। उनके भाषणों में मौलिकता होती थी।श्री जनेश्वर जी केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम, दूरसंचार और रेलमंत्री रहे लेकिन कभी उन पर कोई दाग नहीं लगा।उनमें बड़प्पन था कि वे छोटे से छोटे कार्यकर्ता का काफी ध्यान रखते थे। उन्होने कहा कि पैसों से नहीं, कर्म और सिद्धांतों से आदमी बड़ा होता है। संघर्ष, ईमानदारी और निष्ठा के बूते राजनीति में आगे बढ़ने का रास्ता मिल सकता है। नौजवानों को उनसे यह सीख लेनी चाहिए कि हर गलत काम का विरोध करें।इस दौरान प्रमुख रूप से जिलाध्यक्ष ब्रजेश कुमार गौतम कृष्ण कुमार त्रिपाठी रामनाथ यादव दयाशंकर निषाद कबीर आलम मुन्नी लाल यादव देवेंद्र भूषण निषाद सुरेंद्र निषाद रामजतन यादव संजय यादव संजय पहलवान दयानंद विद्रोही राम निरंजन यादव सुनील यादव अमरजीत यादव अशोक चौधरी हीरालाल यादव मैंना भाई महेंद्र तिवारी रवि यादव अजय सोनकर भवनाथ यादव गोली यादव अनूप यादव सुबोध यादव राजेश पांडे कंचन श्रीवास्तव रफीउल्लाह सलमानी शमशेर अली मेराज खान छोटे लाल राजभर अफसैन हैदर अशोक पांडे दूईजा देवी लाल यादव धर्मेंद्र मौर्य महेंद्र यादव परशुराम यादव श्रीकांत यादव धनपत यादव रामाशंकर यादव प्रमोद पासवान सच्चिदानंद यादव सीरिल राय सुनील आजाद आदि मौजूद रहे

गोरखपुर। अखिल क्षत्रिय महासभा गोरखपुर मंडल के तत्वावधान में महाराणा प्रताप की 427 वीं पुण्यतिथि गोरखपुर रेलवे स्टेशन के सामने स्थित महाराणा प्रताप की मूर्ति पर माल्यार्पण कर मनाई गई l कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश संरक्षक रघुनाथ सिंह ने किया तथा मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय महामंत्री रणवीर सिंह, विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय प्रवक्ता कालिका सिंह, राष्ट्रीय सचिव मनीष कुमार सिंह ,राष्ट्रीय संस्थापक सदस्य अर्चना सिंह, सैनिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष संतोष कुमार सिंह रहे। सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि राजस्थान की भूमि सदा ही महापुरुषों एवं वीरों की भूमि रही है उनमें से एक सिसोदिया वंश के महाराणा प्रताप थे। महाराणा प्रताप अपने साम्राज्य देश एवं सर्व समाज की रक्षा जंगल की घास की रोटियां खाकर, सरिता का पानी पीकर, पहाड़ों पर सोकर, कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए किए। वह अकबर से लड़ते रहे परंतु कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं किए जब कि अकबर का कहना था कि यदि महाराणा प्रताप हमारी अधीनता स्वीकार कर ले तो वह स्वतंत्र होकर के मेवाड़ पर राज्य करें हम उनकी तरफ देखेंगे भी नहीं परंतु अकबर की इस बात को महाराणा प्रताप ने नहीं माना। हल्दीघाटी का भयंकर युद्ध हुआ था उस युद्ध को कवि ने कविता में इस प्रकार से उद्धृत किया है। हल्दीघाटी का युद्ध याद अकबर को जब आ जाता था। कहते हैं अकबर महलों में, सोते-सोते जग जाता था। यह रही महाराणा प्रताप की वीरता की मिसाल वह अपने साम्राज्य, देश एवं सर्व समाज की रक्षा करते हुए 19 जनवरी 1597 को बीरगति को प्राप्त हो गए। आज भी हम उनके वीरता, शौर्य, त्याग,पराक्रम, दृढ़ प्रण को प्रणाम कर उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करने का संकल्प लेते हैं। इस अवसर पर प्रदेश संरक्षक रघुनाथ सिंह कैलाश सिंह राष्ट्रीय महामंत्री रणबीर सिंह राष्ट्रीय प्रवक्ता कालिका सिंह राष्ट्रीय सचिव मनीष कुमार सिंह जय गोविंद यादव गोरखपुर मंडल संयोजक शंभू नाथ सिंह सैनिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष संतोष कुमार सिंह, वीरांगना प्रकोष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष अर्चना सिंह जिला अध्यक्ष इंदू सिंह, जेपी सिंह, धर्मेंद्र कुमार सिंह, मनोज कुमार सिंह, सुनील कुमार सिंह, शैलेंद्र प्रताप सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, अमरजीत सिंह, अभिषेक सिंह, सुनीता सिंह, आर डी सिंह, रविंद्र प्रताप सिंह ,सौरभ पाल सिंह, कार्तिकेय प्रताप सिंह, मुकेश सिंह, ओम प्रकाश सिंह ,संजीत सिंह उपस्थित रहे।

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गोरखपुर। प्रथम क्रान्तिकारी महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती के अवसर पर दिशा छात्र संगठन और स्त्री मुक्ति लीग की ओर से पन्त पार्क में ‘जाति तोड़क भोज’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत क्रान्तिकारी गीत ‘अभी लड़ाई जारी है’ ‘ज़िन्दगी ने एक दिन कहा कि तुम लड़ो’ से हुई। दिशा छात्र संगठन की अंजली ने बताया कि सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को सतारा ज़िले के नायगांव में हुआ था। आज से 174 साल पहले पुणे के भिडे वाडा में सावित्री बाई और ज्योतिराव फुले ने लड़कियों के लिए स्कूल खोला था और रुढ़िवादी ताकतों से कड़ी टक्कर ली थी। इस संघर्ष के दौरान उन पर पत्थर, गोबर, मिट्टी तक फेंके गये पर सावित्रीबाई ने फातिमा शेख के साथ मिलकर शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य बिना रूके किया। अपने संघर्ष में इन लोगों ने जातिवाद और आज के समय सामाजिक लड़ाई को कमजोर करने वाली सोच “अस्मितावाद” के खिलाफ भी संघर्ष किया। ज्योतिबाराव फुले ने लिखा कि जो हमारे संघर्षों में शामिल होता है उसकी जाति नहीं पूछी जानी चाहिए। अंजली ने आगे कहा कि अंग्रेजों ने भारत में जिस औपचारिक शिक्षा की शुरूआत की थी, उसका उद्देश्‍य “शरीर से भारतीय पर मन से अंग्रेज” क्‍लर्क पैदा करना था। इसलिए उन्‍होंने ना तो शिक्षा के व्‍यापक प्रसार पर बल दिया और ना ही तार्किक और वैज्ञानिक शिक्षा पर। ज्‍योतिबा राव और सावित्रीबाई फूले ने सिर्फ शिक्षा के प्रसार पर ही नहीं बल्कि प्राथमिक शिक्षा में ही तार्किक और वैज्ञानिक शिक्षा पर बल दिया। अंधविश्‍वासों के विरूद्ध जनता को शिक्षित किया। आजादी के बाद सत्ता में आयी तमाम चुनावी पार्टियों का रवैया शिक्षा के प्रसार के मामले में उपेक्षित ही रहा है। देश में पहली व्यवस्थ्ति शिक्षा नीति आज़ादी के 21 साल बाद 1968 में बनी। इस दस्तावेज में स्कूली शिक्षा पर जोर केवल कुशल मज़दूर पैदा करने के लिए था। इन दस्तावेजों में एकसमान स्कूल व्यवस्था लागू करने की बात तो कही गयी लेकिन इसके लिए ज़रूरी निजी स्कूलों के तंत्र को ख़त्म करने की जगह निजी स्कूलों के दबदबे को बरकार रखा गया। आज के समय में शिक्षा के सामने पैसों का एक ताला लगा हुआ है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में गैर बराबरी को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के पूरे सरकारी तंत्र को चौपट किया जा रहा है। ऐसे दौर में सावित्रीबाई फुले की विरासत को याद करते हुए सबके लिए समान और निशुल्क शिक्षा की लड़ाई को आगे बढ़ाना सभी इंसाफ पसंद छात्रों -युवाओं का कार्यभार है। कार्यक्रम में दीपक शर्मा, मनीष,धनंजय, विद्यानंद,माया, रेखा, मुकेश, दीपक, अदिति, शेषनाथ आदि शामिल रहे।