महिलाओं को अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी जैसे क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यह भेदभाव उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोकता है। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्या और बाल विवाह जैसी हिंसा लैंगिक असमानता का एक भयानक रूप है। यह हिंसा महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाती है और उन्हें डर और असुरक्षा में जीने के लिए मजबूर करती है। लैंगिक असमानता गरीबी और असमानता को बढ़ावा देती है, क्योंकि महिलाएं अक्सर कम वेतन वाली नौकरियों में काम करती हैं और उन्हें भूमि और संपत्ति जैसे संसाधनों तक कम पहुंच होती है। दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----लैंगिक असमानता के मुख्य कारण क्या हैं? *-----आपके अनुसार से लैंगिक समानता को मिटाने के लिए भविष्य में क्या-क्या तरीके अपनाएँ जा सकते हैं? *-----साथ ही, लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए हम व्यक्तिगत रूप से क्या प्रयास कर सकते हैं?

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवस्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं को लंबे समय तक उपेक्षा और असमानता का सामना करना पड़ा है। शताब्दी में, महिला अधिकार आंदोलन ने महिलाओं को मतदान का अधिकार और शिक्षा और काम में समान अवसर देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। घरेलू हिंसा अधिनियम, यौन उत्पीड़न अधिनियम और मातृत्व लाभ अधिनियम महिलाओं के अधिकारों के बारे में समाज की धारणा में सुधार कर रहे हैं, लेकिन कई चुनौतियों अभी भी बनी हुई हैं। आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ा है। बाल शोषण और लैंगिक हिंसा जैसी समस्याएं आज भी प्रचलित हैं। इनसे निपटने के लिए जागरूकता अभियान कानूनों द्वारा सख्ती से लागू किए जाते हैं।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवस्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारतीय समाज में दो परिवारों के बीच विवाह के एक लापता विषय की पहचान की गई ऐसा माना जाता है कि यह शादी के बाद महिलाओं से संबंधित है जब वे अपने ससुराल जाती हैं लेकिन उनकी मां उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रहती हैं। नामकरण से यह भी पता चलता है कि महिला का परिवार कौन है और वह किस समुदाय से ताल्लुक रखती है। पहचान को मजबूत करने के लिए समाज में जागरूकता और बदलाव लाना आवश्यक है। शिक्षा और सामाजिक समर्थन की मदद से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवस्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता और सम्मान गहराई से जुड़े हुए हैं। वित्तीय सहायता न केवल महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता देती है बल्कि समाज में उनकी स्थिति को भी मजबूत करती है। और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम यह है कि सबसे पहले, वित्तीय सहायता महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद करती है, जब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होंगी, तो वे अपनी और अपने परिवार की बेहतर देखभाल करेंगी। देखभाल करने वाले शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य आवश्यकताओं पर खर्च कर सकते हैं जो उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं, साथ ही महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवस्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं की पहचान एक जटिल विषय है यह मुद्दा सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संदर्भों में गहराई से निहित है। परंपरागत रूप से, महिलाओं को घर के कामों और परिवार की देखभाल तक ही सीमित रखा गया है, इसलिए उनकी पहचान अक्सर उनके घरों की चारदीवारी तक ही सीमित रहती है। सार्वजनिक जीवन में सीमित और कथित, महिलाओं की पहचान को फिर से परिभाषित करने के लिए समाज में गहन परिवर्तन की आवश्यकता है। हां, लड़कियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाने के साथ-साथ समाज में सभी स्तरों पर समानता और न्याय स्थापित करने में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवस्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिला विकास और भ्रूण हत्या महिला अधिकार और भ्रूण हत्या दोनों गंभीर मुद्दे हैं। कथित तौर पर, हमें समाज में उनकी गरिमा और समानता के लिए लड़ना चाहिए। महिलाओं को उनके अधिकारों का पालन करने के लिए सशक्त बनाने के लिए शिक्षा, सशक्तिकरण और कानूनी सुरक्षा की आवश्यकता है। भ्रूण हत्या एक अपराध है। यह एक बुनियादी मानवाधिकार का उल्लंघन है और जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर विभिन्न भारतीय राज्यों में बहुमूल्य जीवन को खतरे में डालता है। न्यायपूर्ण और समान समाज के लिए महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करना और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लड़ना हम सभी की जिम्मेदारी है।

दोस्तों, हमारे यह 2 तरह के देश बसते है। एक शहर , जिसे हम इंडिया कहते है और दूसरा ग्रामीण जो भारत है और इसी भारत में देश की लगभग आधी से ज्यादा आबादी रहती है। और उस आबादी में आज भी हम महिला को नाम से नहीं जानते। कोई महिला पिंटू की माँ है , कोई मनोज की पत्नी, कोई फलाने घर की बड़ी या छोटी बहु है , कोई संजय की बहन, तो कोई फलाने गाँव वाली, जहाँ उन्हें उनके मायके के गाँव के नाम से जाना जाता है। हम महिलाओ को आज भी ऐसे ही पुकारते है और अपने आप को समाज में मॉडर्न दिखने की रीती का निर्वाह कर लेते है। समाज में महिलाओं की पहचान का महत्व और उनकी स्थिति को समझने की आवश्यकता के बावजूद, यह बहुत दुःख कि बात है आधुनिक समय में भी महिलाओं की पहचान गुम हो रही है। तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----आप इस मसले को लेकर क्या सोचते है ? *-----आपके अनुसार से औरतों को आगे लाने के लिए हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है *-----साथ ही, आप औरतों को किस नाम से जानते है ?

किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

दुनिया भर में हर साल 15 मार्च को उपभोक्ता के हक की आवाज़ उठाने और ग्राहको को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक बनाने के लिए "विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस" मनाया जाता है। 15 मार्च, 1983 में उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाने की शुरूआत कंज्यूमर्स इंटरनेशनल नाम की संस्था ने की थी।आपको बता दे की हर साल विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के लिए एक थीम बनाई जाती है कंज्यूमर्स इंटरनेशनल ने इस साल की थीम " उपभोक्ताओं के लिए निष्पक्ष और जिम्मेदार एआई "को चुना है। मोबाइल वाणी के पुरे परिवार की ओर से आप सभी को "विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस"की बहुत बहुत शुभकामनाएं।