नासिक में रहने वाली मयूरी धूमल, जो पानी, स्वच्छता और जेंडर के विषय पर काम करती हैं, कहती हैं कि नासिक के त्र्यंबकेश्वर और इगतपुरी तालुका में स्थिति सबसे खराब है। इन गांवों की महिलाओं को पानी के लिए हर साल औसतन 1800 किमी पैदल चला पड़ता है, जबकि हर साल औसतन 22 टन वज़न बोझ अपने सिर पर ढोती हैं। और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला मऊ से प्रेम चंद सिंह पटेल, मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि मतदान में श्रमिकों का बहुत बड़ा योगदान होता है।

हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।

जल ही जीवन है। यह पंक्तियाँ हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। आज के समय में जब दुनिया शुद्ध जल की कमी से जूझ रही है, यह पंक्तियाँ और सार्थक हो जाती हैं। भारत में जल संकट लगातार गहराता जा रहा है। कई राज्य हैं जो भूजल की कमी के चरम बिंदु को पार कर चुके हैं। हर साल 22 मार्च के दिन विश्व जल दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमारे जीवन में जल के महत्व और उसके संरक्षण को समर्पित है।इस विश्व जल दिवस पर पानी की बर्बादी को रोके और जल को प्रदूषित होने से बचाये। मोबाइल वाणी के पुरे परिवार की ओर से आप सभी को विश्व जल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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मऊ

नमस्कार , श्रोता , मोबाइल फोन पानी से कट जाते हैं , पीड़ितों की चूड़ा बस्तियों में चार साल के दुख के बाद भी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं । मऊ में मधुबन के उत्तरी छोर पर घाघरा नदी के तट पर बसे धरमपुर बिशनपुर के तीन सौ कतर पीड़ितों को प्रशासन द्वारा विभिन्न स्थानों पर भूमि आवंटित की गई थी । बस्तियाँ स्थापित की गईं लेकिन उन बस्तियों में विकास की कमी के कारण चार साल बाद भी जमीनी सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं , जिससे वहाँ के ग्रामीणों को बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । नई बस्ती में , दो हजार उन्नीस से तेइस तक , घाघरा नदी में लगातार कटाव होता रहा , जिसमें तीन सौ आठ घरों और उपजाऊ भूमि को काटकर घाघरा नदी में मिला दिया गया , जिसे प्रशासन ने गंभीरता से लिया । कुछ स्थानों को छोड़कर सभी को बस्तियों के रूप में वर्णित किया गया था । ग्रामीणों ने कहा कि चार साल बाद भी हमें यहां बुनियादी सुविधाएं नहीं मिली हैं । मिट्टी बिछाने के प्रमाण पत्र के लिए भी कई बार धरना दिया गया है । कुल चौदह बस्तियाँ , जिनमें लक्ष्मीपुर , गोबरही , मझौआ , सुआ , कविराजपुर , भैरपुर , बलुआ , भाटिया , गोबरही शामिल हैं ।

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला मऊ से ममता विश्वकर्मा , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहती है कि पंपों का शुद्धिकरण नहीं ले रही है जिम्मेदार भारत जिले के शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए संघर्ष कर रहा है हैंडपंप लगा दिए गए हैं , लेकिन स्थिति यह है कि अधिकांश स्थानों पर रीबोर्ड की कमी के कारण ये हैंडपंप खराब हो रहे हैं , जबकि कुछ दूषित पानी भी उगल रहे हैं । सुजल के बारे में संस्कृत में बहुत कुछ है । ग्रामीणों ने जन प्रतिनिधियों से इस ओर अधिकारी का ध्यान आकर्षित करने और क्षतिग्रस्त इंडिया मरखोदाम की मरम्मत की मांग करने को कहा ।

नमस्कार , मैं नीरज कुमार मऊ हूँ । मोबाइल वाणी फ्रेंड्स में आपका स्वागत है , मऊ के फतेहपुर मांडव ब्लॉक क्षेत्र के तहत , मधुबन से परतिया तक की सड़क पर पानी मिलना शुरू हो गया है । जबकि यह सड़क लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत आती है , लोक निर्माण विभाग का निर्माण कार्य ठप हो गया है । स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पैदल चलने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।