उत्तर प्रदेश राज्य के श्रावस्ती जिला से शीला देवी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत में बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता वर्तमान में एक चिंता का विषय है। भारत में चौदह वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है। अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना एक संवैधानिक प्रतिबद्धता है। देश की संसद ने वर्ष दो हजार नौ में शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया जिसके द्वारा सात से चौदह वर्ष की आयु के बीच के सभी बच्चों के लिए शिक्षा एक मौलिक अधिकार बन गया

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दोस्तों, भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट से यह पता चला कि वर्तमान में भारत के करीब 6.57 प्रतिशत गांवों में ही वरिष्ठ माध्यमिक कक्षा 11वीं और 12वीं यानी हायर एजुकेशन के लिए स्कूल हैं। देश के केवल 11 प्रतिशत गांवों में ही 9वीं और 10वीं की पढ़ाई के लिए हाई स्कूल हैं। यदि राज्यवार देखें तो आज भी देश के करीब 10 राज्य ऐसे हैं जहां 15 प्रतिशत से अधिक गांवों में कोई स्कूल नहीं है। शिक्षा में समानता का अधिकार बताने वाले देश के आंकड़े वास्तव में कुछ और ही बयान करते हैं और जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति समाज की प्रगति का संकेत देती है, वहीं लड़कियों की लड़कों तुलना में कम संख्या हमारे समाज पर प्रश्न चिह्न भी लगाती है? वासतव में शायद आजाद देश की नारी शिक्षा के लिए अभी भी पूरी तरह से आजाद नहीं है। तब तक आप हमें बताइए कि * ------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने लाइन में खड़ी है ? * ------आपके हिसाब से लड़कियाँ की शिक्षा क्यों नहीं ले पा रहीं है ? लड़कियों की शिक्षा क्यों ज़रूरी है ? * ------साथ ही लड़कियाँ की शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है ?

उत्तरप्रदेश की श्रावस्ती जिले की शीला देवी ने हमे मोबाइल वाणी के माध्यमबताया की शिक्षा हमारे जीवन में जरुरी है क्योकि शिक्षा हमारे जीवन की अनमोल धरोहर है

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