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सुबह-ए-बनारस के प्रकल्प काव्यार्चन की छठी कड़ी का आयोजन अस्सी घाट पर हुआ। कलाविद डॉ. राधाकृष्ण गणेशन की अध्यक्षता में हुए स्थापित एवं नए रचनाकारों ने काव्यपाठ किया। शुरुआत युवा रचनाकार सनी बघेल ने की। उन्होंने पहले प्रेम गीत की प्रस्तुति के उपरांत 'गीत को मेरे स्वर दे' शीर्षक से प्रभावी रचना सुनाई। आकाशवाणी की उद्घोषिका जगदीश्वरी चौबे ने सुनाया- 'एक दो रोज़ की मुलकात नहीं थी, एक दो रोज़ की पहचान नहीं थी, एक छोटी सी मुलाकात हुई थी, और शुरू हुआ था सिलसिला बातों का...।काव्यार्चन का समापन डॉ. राधाकृष्ण गणेशन ने 'आदमी, सभ्यता के पूर्व, रहता था जंगलों में, बीहड़ों में, वनों में, पेड़ों की खोहों में, उनकी शाखाओं में. सुनाकर किया। अंत में तबला सम्राट पंडित लच्छू महाराज की अर्धागिनी टीना जे. सिंह ने कवियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया। धन्यवाद ज्ञापन समन्वयक डॉ. नागेश त्रिपाठी शांडिल्य ने किया।

सनातन धर्म में माघ महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा को बहुत ही महत्वपूर्ण दिन माना गया है। इस दिन दूर-दूर से लोग गंगा स्नान के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा स्नान से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और पुण्यफल की प्राप्ति होती है। माघ पूर्णिमा और रविदास जयंती दोनों है। रविदास जी ने भी कहा है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा अर्थात मन शुद्ध होगा तभी पवित्र गंगा में स्नान का फल प्राप्त होगा। पुराणों में इस संबंध में बताया गया है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होकर अमृत की वर्षा करते हैं। इसके अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों में होते हैं इसलिए इनमें सारे रोगों से मुक्ति दिलाने वाले गुण उत्पन्न होते हैं। वही माघ पूर्णिमा के अवसर पर पतित पावनी मां गंगा के तट पर लाखों श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा में डुबकी लगाई। भोर से ही श्रद्धालुओं का हुजूम गंगा घाटों पर उमड़ पड़ा। इस दौरान श्रद्धालुओ ने गंगा स्नान करते हुए दान पुण्य किया।

वाराणसी के भारत अध्ययन केन्द्र, बीएचयू, महाकवि जयशंकर प्रसाद ट्रस्ट,लखनऊ एवं संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 'महाकवि जयशंकर प्रसाद और भारत का सांस्कृतिक गौरवबोध' के दूसरे दिन डा. विध्याचल यादव ने कहा कि प्रेमचंद और प्रसाद हिंदी कथा साहित्य में एक साथ उदित होते हैं और दोनों काशी के हैं। प्रसाद का मूल्यांकन प्रेमचंद के समानांतर ही होता रहा। प्रसाद की कला कथा, कविता, उपन्यास में भी रहा परंतु प्रेमचंद से कुछ कमजोर लेकिन अद्भुत विचारों वाले हैं। डा. मयंक भार्गव, डा. विवेक सिंह, हुई। प्रो. बलिराज पांडेय व डा. प्रभाकर सिंह ने विचार प्रकट किए । संचालन डा. अमित कुमार पांडेय और धन्यवाद ज्ञापन डा. कविता प्रसाद ने किया। कार्यक्रम में प्रो चन्द्रकला त्रिपाठी, डा. जया पांडेय व डा. गीता योगेश भट्ट आदि रहीं।