बात पर आम सहमति होनी चाहिये कि देश को एक राष्ट्र, एक चुनाव की ज़रूरत है या नहीं। सभी राजनीतिक दलों को कम-से-कम इस मुद्दे पर विचार-विमर्श में सहयोग करना चाहिये, जनता की राय को ध्यान में रखा जाना चाहिए एक परिपक्व लोकतंत्र होने के।ऐसे बदलाव भविष्य में किसी प्रकार के संवैधानिक संशोधनों के लिये एक चिंताजनक मिसाल भी साबित हो सकते हैं।