केंद्र सरकार के नियम से वंचित लोगों को पेंशन देगी राज्य सरकार केंद्र सरकार की नयी निर्देशिका के अनुसार पेंशन योजना से पश्चिम बंगाल के लगभग 3.25 लाख से भी अधिक लोग वंचित हो गये हैं. इन वंचितों के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘बंगाल विशेष भत्ता योजना’ शुरू की है, जिसके तहत इन वंचित लोगों को राज्य सरकार की ओर से आर्थिक अनुदान दिया जायेगा. नेशनल सोशल एसिस्टेंस प्रोग्राम के तहत देश के करोड़ों लोगों को भत्ता मिलता है. मुख्य रूप से निम्न वर्ग के लोगों को न्यूनतम आर्थिक मदद करने के लिए ही इस योजना की शुरुआत की गयी थी. इस योजना के तहत गरीब वृद्ध, असहाय विधवा महिलाओं व दिव्यांगों को मासिक भत्ता दिया जाता है. इस योजना के तहत पश्चिम बंगाल के लिए कुल कोटा 21.31 लाख है, जबकि राज्य में इस श्रेणी के लोगों की संख्या 23.40 लाख है. राज्य सरकार द्वारा इन वंचितों को भी भत्ता देने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया था, लेकिन केंद्र ने इसे अस्वीकार कर दिया. अब इन वंचितों की मदद के लिए राज्य सरकार ने हाथ बढ़ाया है. राज्य सरकार ने प्रत्येक जिले के पंचायत विभाग को निर्देश दिया है कि जिन-जिन लोगों का नाम केंद्रीय योजना से कटा है, उनकी तालिका बना कर उन्हें विशेष भत्ता के नाम पर यह राशि प्रदान की जाये. ई.एस.आई. अस्पतालों की बदहाली फरीदाबाद, 23 फरवरी को ई.एस.आई. के सामने मजदूर सही इलाज व दवाइयों के लिए इंकलाबी मजदूर केन्द्र, वीनस इंडस्ट्रियल वर्कर्स यूनियन व मजदूर मोर्चा अखबार के सम्पादक सतीश व अन्य जन संगठनों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे वहीं दूसरी ओर ई.एस.आई. के मेडिकल काॅलेज में मजदूरों के पैसे से ही एसीक्रक्स (esicrux) फेस्ट 2018 के तहत मौज-मस्ती की जा रही थी।डिस्पेन्सरियों में इलाज कम और रिकार्ड रखने का काम ज्यादा होता है। डिस्पेन्सरी से अस्पताल और अस्पताल से डिस्पेन्सरी और कभी-कभी प्राइवेट अस्पताल एक हफ्ते के लिए रेफर। डिस्पेन्सरी में डाक्टर सहित सारे स्टाफ को तो बैठने के लिए जगह होती है लेकिन मरीजों के लिए निर्देश लिखा होता है कि लाइन मे खड़े रहें। सुबह 7 बजे का टाइम है। मरीज तो 7 बजे या उससे पहले पहुंच जाते हैं लेकिन अन्य स्टाफ 7:30 आना शुरू होता है और आफिस की सफाई और मेल मिलाप होता है। डाक्टर सहित सारे स्टाफ की भाषा शैली पुलिसवालों जैसी होती है। डिस्पेन्सरी व अस्पताल के डाक्टरों को पता नहीं होता कि उसकी डिस्पेन्सरी में कौन-कौन सी दवाईयों की जरूरत है स्वच्छ भारत अभियान के तहत डाक्टर व अन्य स्टाफ टायलेट में ताला लगाकर रखते हैं। मरीजों के लिए टायलेट की कोई व्यवस्था नहीं है। यही हाल पानी का है कि मजदूर घर से पानी पीकर आयें। वैसे पुरुष और महिलाओं दोनों को ही इसका होश ही नहीं होता और वे तो बस यही चाहते हैं कि उन्हें बस इलाज और दवाइयां मिल जायें यही बहुत है। ई.एस.आई. अस्पताल व डिस्पेन्सरियों को सरकार ने अपनी स्कीमों को प्रचार का अड्डा बना रखा है।जिस शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा की व्यवस्था सरकार को अपने पैसे से करनी चाहिए वह मजदूरों के पैसे काटने के बाद भी सरकार और ई.एस.आई. निगम मजदूरों को इलाज के लिए तड़पा रहे हैं।