झारखंड राज्य के बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड से जे.एम रंगीला मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि बेरमो कोयलांचल से सटे गाँव के निवासियों का वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण एवं विस्फोट से होने वाले कम्पन तथा घटते वनों से रूबरू होना नियति बन गया है। जिसका प्रतिकूल असर गाँव के निवासियों पर पड़ता है। परन्तु गाँव वालों को औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बे शुमार आय का दस प्रतिशत भी सुविधाएँ हासिल नहीं हो पाती है। वहीँ कोलइंडिया के अनुसंगी इकाई सीसीएल की ढोरी क्षेत्र स्थित, एसडीओसीएम परियोजना के समीप गाँव गुंजडीह,मुंगो,बड़कीबेडा,हेटपेडा,तुरियों,कारीपाली,चपरी एवं मकौली इत्यादि दर्जनों गाँव आते हैं। लेकिन यदि इन गाँवो की तुलना सीसीएल की क्लोनियों से की जाए तो, इण्डिया बनाम भारत की तस्वीर झलकती है। खदानों के लगातार विस्तार से वनों का क्षेत्रफल घनत्व लगातार घटता चला जा रहा है। खदानों के विस्तार के कारण मवेशियों के लिए चारा का अभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।कई हरे भरे वनों को नष्ट कर दिया गया लेकिन सीसीएल के अधिकारीयों द्वारा इसकी भरपाई करने की कोशिश अब तक नहीं की गई। सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष पेड़ लगाव,पर्यावरण को स्वछ बनाओं अभियान चलाया तो जाता है लेकिन खदान निर्माण के लिए उन्ही पेड़ो को काट दिया जाता है।सरकार द्वारा सीसीएल अधिकारी एवं वन विभाग के पास पेड़ लगाने के नाम पर करोड़ो रूपए दिए जाते हैं जिसका जमीनी स्तर पर कोई रूप नजर नहीं आता है। परिणामस्वरूप कोयलांचल से सटे गाँव की भूमि बंजर हो गई जिसका कुप्रभाव इस वर्ष देखने को मिला कि बारिश के अभाव में अनेकों खेत में धान की रोपाई नहीं हो सकी। नियमतः उक्त गाँवो को विद्युत,सड़क,पेजल,स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ सीसीएल को मुहैया करवाना चाहिए।