बोकारो जिले पेटरवार प्रखंड से सुषमा कुमारी जी झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि झूमर गीत झारखण्ड की संस्कृति से जुड़ी हुई है। जो आज लुप्त होने के कगार पर हैं। जब झारखंड के जनजाति के लोग बहुत ही विशेष अवसर को मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं, चाहे घर या गांव समाज में, वे अपनी लय में झूमर गीत और नृत्य करते है।संगीत के बिना झारखंड निष्प्राण है। झारखंड के नृत्यों में प्राय: गीतों की प्रधानता होती है। झारखंडी समाज की संरचना आदिवासी सदान की संभागिता से हुई है और उन्होंने ही झूमर गीत को सराये रखा है। लेकिन आज की इस दौड़-भर में हर चीज की महंगाई बढ़ गयी है जिसके कारण लोग मनोरंजन के कार्यकर्मो को छोड़ अपने रोजगार की तलाश में लगे रहते है। झारखण्ड सरकार को झूमर गीत की ओर ध्यान देने की जरुरत है , झूमर गीत की परंपरा एवं संस्कृति को उजागर करने की जरुरत है साथ ही लोगो को प्रोत्साहित करनी चाहिए। और साथ ही जगह-जगह पर झूमर गीत का आयोजन करना चाहिए।