लंपी पशुओं को होने वाली एक छुआछूत वाली बीमारी है। यह पाक्स वायरस से मवेशियों में फैलती है और यह बीमारी मच्छर और मक्खियों के जरिए एक से दूसरे पशुओं में फैलती है। इस बीमारी के लक्षणों में पशु के शरीर पर छोटी-छोटी गाठें बन जाती हैं, जो मवाद के साथ धीरे-धीरे पूरे शरीर पर फैलने लगती है। पिछले दिनों खड़कपुर अनुमंडल के टेटिया बंपर प्रखंड मुख्यालय के कई गांव जगतपुरा तिलकारी धोरी कई पशुओं में लंपी के लक्षण देखने को मिले। वहीं जगतपुर गांव में दर्जनों पशु संक्रमण है इस बीमारी की चपेट में आकर कई पशुओं की मौत भी हो गई। टेटिया बंपर के पशु चिकित्सक डॉ प्रकाश कुमार के अनुसार इस बीमारी के कारण पशु के शरीर पर जख्म नजर आने लगते हैं और पशु खाना कम कर देता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इसके प्रसार के साथ घटने लगती है। इसकी चपेट में आकर पशु की मौत भी हो सकती है पशु चिकित्सकों के अनुसार इस बीमारी की शुरुआत में पशु को दो से तीन दिन के लिए हल्का बुखार रहता है। उसके बाद पूरे शरीर में गाठें (2-3 सेमी) निकल आती हैं। ये गाठें गोल उभरी हुई होती हैं जो चमड़ी के साथ-साथ मसल्स की गहराई तक प्रवेश कर जाती हैं। मवेशी के मुंह, गले, श्वांस नली तक इस बीमारी का असर दिखता है। साथ ही लिंफ नोड में सूजन, पैरों में सूजन, दुग्ध उत्पादकता में कमी, गर्भपात, बांझपन और कभी-कभी जानवर की मौत भी हो जाती है। क्या है इस बीमारी का इलाज: पशु चिकित्सक के निर्देश अनुसार ही इलाज करना चाहिए। बीमार पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखना चाहिए संक्रमण रोकने के लिए मवेशी को 5 से 7 दिन तक एंटी बायोटिक लगाना चाहिए बुखार होने पर मवेशी को पेरासिटामाल अनिवार्य रूप से खिलाएं मवेशी को मल्टीविटामिन खिलाना चाहिए। साथ ही डाक्टरी सलाह पर इनके घाव पर दवा लगाएं संक्रमित पशु को पर्याप्त मात्रा में तरल और हल्का खाना व हरा चारा देना चाहिए मौत होने पर संकमित मृत पशु को जैव सुरक्षा मानक के अनुसार डिस्पोज किया जाना चाहिए संक्रमित पशु को सामान्य पशुओं व इनके बछड़ों से अलग रखें