बिहार के जिला जमुई,प्रखण्ड सिकंदरा से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी किसानों की आमदनी में किसी प्रकार की कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।बिहार में साल-दर-साल अच्छी पैदावार का कीर्तिमान बन रहा है।फिर भी किसानों की हालत नहीं सुधर रही है।आय के मामले में आज भी बिहार के किसान राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है।आर्थिक सोच के चलते किसानों की मुश्किलें काफी बढ़ रही है। खाद्य पदार्थो में दिन-प्रतिदिन बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने का समस्त भार किसानों पर ही डाल दिया जाता है।यही कारण है की पैदावार की मुख्य कीमतें बीस वर्षो बाद भी लगभग स्थिर है।एक अध्ययन के मुताबिक 1995 से अबतक उत्पादक मूल्यों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।1970 में जब सरकारी शिक्षकों की तनख्वाह 80 रूपया प्रति माह थी तब गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य 76 रुपये प्रति क्विंटल था।दोनों के इनकम में महज चार रुपये का फर्क था।अब 46 वर्षो में शिक्षकों का वेतन औसतन 40 हजार हो गया है। लेकिन गेंहू की कीमत महज 16 सौ रुपये प्रति क्विंटल पर अटकी हुई है।दोनों की कमाई के अंतर से किसानो की बदहाली का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।जाहिर है सबकी सुविधाएँ बढ़ रही है लेकिन किसान की नहीं।जिस प्रदेश के अन्नदाता खुशहाल नहीं रहेंगे तो उसकी तरक्की की राह आसान कैसे हो सकती है।