मध्यप्रदेश राज्य के जिला शिवपुरी के खनियादाना से संवाददाता श्यामला लोधी मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि किसानो ने खेत में बोनी कर ली थी जिसके बाद बीज सड़ चूका है।इसलिए किसानो को मुआबजा देना चाहिए।सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।सड़क भी ख़राब हो गया है।
Transcript Unavailable.
Transcript Unavailable.
Transcript Unavailable.
Transcript Unavailable.
मध्य प्रदेश राज्य के शिवपुरी जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता श्यामलाल लोधी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि शिवराज लोधी ने एक साल पहले पशु केसीसी बनवाया था। लेकिन बैंक द्वारा लोन नहीं दिया जा रहा है। बैंक के अधिकारी पैसों की मांग कर रहे हैं
Transcript Unavailable.
मध्य प्रदेश राज्य के शिवपुरी जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता श्यामलाल लोधी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि उचित मूल्य का दुकानदार अनाज देने में लापरवाही करते हैं। सभी को पांच किलो अनाज कम दिया जाता है
राजनैतिक सिंद्धांत औऱ प्रक्रियाओं में न्याय सबसे पुरानी अवधारणाओं में से एक है, न्याय के सिद्धांत को लेकर तमाम प्रकार की बातें कहीं गई हैं, जिसे लगभग हर दार्शनिक और विद्वान ने अपने समय के अनुसार समझाया है और सभी ने इसके पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद किया है। न्याय को लेकर वर्तमान में भी पूरी दुनिया में आज भी वही विचार हैं, कि किसी भी परिस्थिति में सबको न्याय मिलना चाहिए। इसके उलट भारत में इस समय न्याय के मूल सिद्धामत को खत्म किया जा रहा है। कारण कि यहां न्याय सभी कानूनी प्रक्रियाओं को धता को बताकर एनकाउंटक की बुल्डोजर पर सवार है, जिसमें अपरधियों की जाति और धर्म देखकर न्याय किया जाता है। क्या आपको भी लगता है कि पुलिस को इस तरह की कार्रवाइयां सही हैं और अगर सही हैं तो कितनी सही हैं। आप इस मसले पर क्या सोचते हैं हमें बताइये अपनी राय रिकॉर्ड करके, भले ही इस मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में
नए नए आजाद हुए देश के प्रधानमंत्री नेहरू एक बार दिल्ली की सड़कों पर थे और जनता का हाल जान रहे थे, इसी बीच एक महिला ने आकर उनकी कॉलर पकड़ कर पूछा कि आजादी के बाद तुमको तो प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गई, जनता को क्या मिला, पहले की ही तरह भूखी और नंगी है। इस पर नेहरु ने जवाब दिया कि अम्मा आप देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़ पा रही हैं यह क्या है? नेहरू के इस किस्से को किस रूप में देखना है यह आप पर निर्भर करता है, बस सवाल इतना है कि क्या आज हम ऐसा सोच भी सकते हैं?