सोचो ना होते अगर वन उपवन सोचो ना होती नदिया ना होते प्यारे झरने कैसे होता फिर श्रृंगार धरती का प्रकृति है श्रृंगार धरती का धरती लगती है दुल्हन सी ओढ़ कर प्रकृति के नजारे देखो कितने प्यारे-प्यारे आओ धरती का श्रृंगार करें पेड़ लगाकर धरती को खुशियों से भरे।