परम्परा "तेरे घर में भी तेरी माँ और दादी मर्दों से पहले खाना खा लेती हैं क्या"?- कुछ दिन पहले ब्याह कर आयी निशा पर कामिनी जी गुर्राई। एकदम से सकपका गयी निशा......भरवां भिंडी बचपन से ही बहुत भाती थी....सब्जी सास ने बनाई थी.....रोटियां निशा सेक रही थी......जैसे ही सारी रोटियां सिकीं खुद को रोक न सकी और रोटी का रोल बनाकर जैसे ही मुँह खोला... सास की बात ने कान में गर्म लावा सा उड़ेल दिया। चेहरा उतर गया था बिल्कुल। तभी ससुर जी की आवाज़ आयी..... ये कौन सी परम्परा है कि मर्दों से पहले घर की बहू नहीं खा सकती....10 दिन पहले ही तो वादा किया था समधन जी से तुमने...बेटी बनाकर रखेंगे...क्या हुआ उसका...इतनी जल्दी भूल गयीं? अपनी बेटी नेहा पर भी तुम ऐसे ही चिल्लातीं। तू खा लिया कर बेटा जब भी तेरा कुछ भी खाने का मन करे.......बेटी कहा है तो बेटी मानूंगा भी- भानुप्रताप जी निशा के सिर पर हाथ रखकर बोले। कामिनी जी शर्मिंदा सी वहीं खड़ी रहीं। स्वरचित व मौलिक अनु अग्रवाल।