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झारखण्ड राज्य के धनबाद जिला के बाघमारा प्रखंड से बीरबल महतो झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि बरसात का मौसम झुलसती गर्मी से राहत तो प्रदान करता है लेकिन साथ ही कई घातक बीमारियां भी अपने साथ लाता है। यह कई बीमारियों को आमंत्रित करने का मौसम होता है, क्योंकि इस मौसम में बारिश से कई स्थानों पर जलजमाव, कीचड़ व गंदगी से पैदा होने वाले मच्छर और बैक्टीरिया बीमारियां फैलाते हैं।बारिश का मौसम एक ओर जहां अपने साथ हरियाली और खुशगवार मौसम लाता है। वहीं इसके साथ ही कई तरह की बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। दूषित पानी और भोजन के कारण वायरल बुखार, जॉन्डिस, मियादी बुखार (टायफाइड) तथा पेट संबंधी पेचिश जैसी बीमारियां के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अपने घरों के आस-पास कूड़े-कचड़े, जल जमाव और सड़ी-गली चीजों को इकट्ठा नहीं होने दें,साथ ही मच्छरदानी का प्रयोग करें और आस -पास बिलीचिंग पउडर का इस्तेमाल करें ताकि इन बीमारियों से बचा जा सके।
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झारखण्ड राज्य के धनबाद जिला के बाघमारा प्रखंड से बीरबल महतो मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि, होली की फूहड़ता जायज नहीं है। होली हसीं-ख़ुशी और रंगों का त्यौहार है। यह हमें अनेकता में ऐकता का प्रतीक बताता है। कई रंगों से होली खेला जाता है परन्तु होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन मनाया जाता है। जिसमे बुराइयों को जला कर अच्छाईयों को अपनाने का रिवाज़ है। एक पुराणी कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका वरदान पा कर बलशाली बन गई थी। और अहंकार मन होने के कारण प्रहलाद को जलाने की इच्छा लेकर उसे अपने गोद में ले अग्नि में बैठी जिसमे प्रहलाद की जान बच गई और अहंकारी होलिका अग्नि में जल गई। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष होली के एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। और दूसरे दिन अपने मन की बुराइयों को भूल लोग उत्साह के साथ होली मनाते हैं।
झारखंड राज्य के धनबाद ज़िले के बाघमारा प्रखंड से बीरबल महतो मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं, कि समान जीवन जीने के लिए हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए पुरुष एवं महिलाओं को मजदूरी करना पड़ता है, पर हमारा देश एक पुरुष प्रधान होने के कारण पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम मजदूरी दी जाती है। दुर्भाग्य वश जिस घर में केवल महिला कामकाजी होती है उनका एवं उनके परिवार का जीवन अधिक दुःखमय होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में कार्य करने वाली महिलाओं को कम मजदूरी मिलता है, जबकि महिलाएं अपनी शक्ति के अनुसार सही कार्य करतीं हैं।