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जरीडीह बोकारो से शिवनारायण महतो ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि झारखण्ड में आदिवासियों का मुख्य आधार जंगल और जमीन है।इनसे अलग रह कर आदिवासी जीवित नहीं रह पाएंगे।आदिवासिओं की जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने दो कानून बनाये थे ,पहला कानून था सी एन टी और दूसरा कानून था एस पी टी।सी एन टी कानून छोटा नागपुर क्षेत्र में तथा एस पी टी कानून संथाल परगना क्षेत्र में लागु किया गया था।अंग्रेजों ने अपने शासन की आवशयकता को धयान में रख कर, ये कानून बनाया था।संविधान में पांचवीं अनुसूची की व्यवस्था मुख्य रूप से की गई ,जो आदिवासिओं के संरक्षण ,संवर्धन,उनकी परम्परा ,जीवन शैली और उनकी पहचान को अक्षुण रखने का अधिकार प्रदान करती है।सामाजिक ,सांस्कृतिक और भाषा के दृष्टिकोण से झारखण्ड एक विशिष्ट राज्य है।साथ ही झारखण्ड के मूल वासिओं की पहचान उनकी भूमि सम्बंधित दस्तावेजों और 1932 के ख़ातिहान,अंतिम सर्वे ,सी एन टी, एस पी टी एक्ट इत्यादि नियम -अधिनियम से पूर्णतः परिभाषित है।इसलिए सी एन टी, एस पी टी एक्ट पर सरकार द्वारा छेड़ -छाड़ करने का मतलब है ,आदिवासिओं को उनके जमीन से बेदखल करने तथा विकास के नाम पर आदिवासिओं और मूल वासिओं का शोषण और उन पर दमन निति चलाने का प्रयास है।इसे झारखंड वासी बिलकुल बर्दाश नहीं करेंगे। सरकार को चारों तरफ से आंदोलन का बिगुल सुनाई देगा।
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जिला बोकारो के जरीडीह प्रखंड से शिवनारायण महतो जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि झारखण्ड का एक भी जिला ऐसा नहीं है कि जहाँ महिलाओ को डायन बता कर पड़ताड़ित न किया गया हो। कई जगह तो डायन बताकर महिला की हत्या तक कर दी गयी है। जिनके दिल दिमाग में झूठ पर आधारित अंधविश्वास की धारणा ने जड़ जमा ली है,बीमार पड़ने पर वो डॉक्टर के पास न जा कर ओझा गुणीन के पास ही जाते हैं। जहाँ ओझा बीमारी का कारण डायन बिसाही बताते हैं और जिस महिला को वह डायन कह देते हैं उनके पीछे लोग तब तक पड़े रहते हैं जब तक उस महिला की मौत न हो जाये। झारखण्ड के लिए यह एक बहुत बड़ा कलंक है ऐसा अंधविश्वास विशेष कर हरिजन आदिवासी पिछड़ी जाति तथा गरीब और अशिक्षति लोगों की मानसिकता पर इस कदर हावी हो गया है की वे इसके सिवाय दूसरा कुछ सोच ही नही सकते। अंधविश्वास झारखण्ड में एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जिसका समाधान सिर्फ कानून से नहीं हो सकता अन्धविश्वास को जड़ से मिटाना होगा और इसके लिए ग्रामीणों के बीच जाकर जागरूकता का काम फ़ैलाने का काम करना होगा।झारखण्ड में अशिक्षा के स्तर की जमीनी हकीकत को समझाना होगा। पंचायतों में अंधविश्वास के खिलाफ माहौल तैयार करने में पंचायती राज्य प्रतिनिधियों की अहम भूमिका हो सकती है।
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