शुरुआती दौर में मनुष्य प्रकृति के वास्तविक रुप के प्रति आकृषित होता है। उसे निस्वार्थ भावना से संजोता है। परन्तु जब तक उसे अपने आर्य से नहीं जोड़ता तब तक उसके प्रति समर्पण का भाव कमतर होता है।