बोकारो जिला से सुमंत कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते हैं कि पंचायती राज व्यवस्था केप्रांरभ होने से ग्रामीण क्षेत्रोँ के लोगों में एक उम्मीद की किरण दिखी थी।लेकिन पंचायत के प्रतिनिधि उनके उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर रहे।पंचायत के विकास के लिए सरकार करोड़ो रूपये आबंटित कर रही है,पर इस राशि का आपसी मेल-जोल से अपने निजी सुख सुविधा में खर्च किया जाता है।घोटाले बाजी अपनी चरम सीमा पर है।जिला स्तर से ले कर ब्लॉक अधिकारी तक राशियों का बँटवारा किया जाता है।गावँ के विकास के लिए इंदिरा आवास ,कुआँ निर्माण,पंचायत भवन निर्माण,आगनबाड़ी केंद्र तथा ऐसे कई चीज़ों के नाम पर राशि आती है। इन राशियों से सिर्फ अधूरा काम और अधूरा विकास किया जाता है।सिर्फ इसलिए की इस राशि को अधिकारी आपस में ही बंदरबांट कर लेते हैं।ऐसे हालत में गाँवो का विकास कहाँ से संभव है।जिन गरीबों के नाम बीपीएल सूची और इंदिरा आवास योजना के लिए होना चाहिए था उनकी जगह उन व्यक्तियों के नाम होते हैं जिनके पास पैसों और सुख सुविधाओं की कोई कमी नहीं होती है।इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात ये है की समाज के शिक्षित व्यक्ति भी सिर्फ तमाशबीन की तरह तमाशा ही देखते हैं।ऐसे में विकास होना असम्भव है।इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को जनप्रतिनिधि के रूप में ईमानदार और शिक्षित व्यक्तियों को निगरानी हेतु निगरानी समिति का गठन हर गाँव में करना चाहिए।हर महीने में एक बार जनता दरबार के माध्यम से गावं के लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी देनी चाहिए।इसके साथ ही ग्रामीणों की समस्याओं को जानना चाहिए और प्राथमिकता के रूप में उन समस्याओं का समाधान भी करना चाहिए।गावं में चल रही योजनाओ का भी निरिक्षण करना चाहिए और उसमे कोई गड़बड़ी मिलने पर तुरंत ही कार्यवाही की जानी चाहिए।ग्रामीणों के सुझाव एवं प्रतीकिर्याओं पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।