श्रोताओ वितीय वर्ष 2017-18 के लिए मनरेगा के केंद्रीय बजट में मनरेगा की मजदूरी सिर्फ 1 रुपये का इज़ाफ़ा किया गया है। श्रोताओ इस बढ़ती महंगाई के दौर में भारत सरकार द्वारा मनरेगा मजदूरो के लिए मजदूरी में सिर्फ 1रुपये का इज़ाफ़ा किया जाना कहा तक उचित है?..आपको अनुसार इस एक रुपये की बढ़ोतरी से केंद्र सरकार के बजट पर कितना भार पड़ेगा जो अन्य योजनाओं पर खर्च होने वाली राशि को प्रभावित करेगा ? एक करोड़ परिवारों को गरीबी से बाहर लाने का दावा करने वाली सरकार का इतनी कम राशि की बढ़ोतरी करना क्या मजदूरों के स्वाभिमान को चोट पहुँचाना नहीं है ? आये दिन सांसदों और नेताओं के मानदेय में बढ़ोतरी की जा रही है उसके अनुपात में मजदूरो के लिए की गयी बढ़ोतरी पर क्या भारत सरकार को पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है ?.. हाथी के दांत दिखाने के कुछ और और खाने के कुछ और इस कहावत को चरितार्थ करते हुए राज्य सरकार द्वारा तय की गयी दैनिक मजदूरी व मनरेगा मजदूरी में अंतर ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरो की आर्थिक स्थिति व जीवनशैली को किस हद तक प्रभावित करेगी ?...काम से जुड़ी शर्तें और कम मज़दूरी की वजह से बेहतर परिस्थिति वाले मज़दूर जिनके पास और भी अच्छे अवसर हैं,क्या मनरेगा के आलावा वे किस प्रकार के दूसरे विकल्पों के तलाश में जुटेंगे ?