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उत्तरप्रदेश राज्य के जिला झाँसी से विकेश कुमार प्रजापति , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि न्याय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। न्याय प्रक्रिया को क्यों ख़तम किया जा रहा है। सरकार दिव्यांगों के लिए कुछ नहीं किए है। आज भी दिव्यांग जन मजबूर है। दिव्यांग को अपना परिवार चलाने में भी दिक्कत हो रही है। न्याय के लिए आवाज उठाना चाहिए। आज भी भारत में लोगों को न्याय नहीं मिल रहा है।
राजनैतिक सिंद्धांत औऱ प्रक्रियाओं में न्याय सबसे पुरानी अवधारणाओं में से एक है, न्याय के सिद्धांत को लेकर तमाम प्रकार की बातें कहीं गई हैं, जिसे लगभग हर दार्शनिक और विद्वान ने अपने समय के अनुसार समझाया है और सभी ने इसके पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद किया है। न्याय को लेकर वर्तमान में भी पूरी दुनिया में आज भी वही विचार हैं, कि किसी भी परिस्थिति में सबको न्याय मिलना चाहिए। इसके उलट भारत में इस समय न्याय के मूल सिद्धामत को खत्म किया जा रहा है। कारण कि यहां न्याय सभी कानूनी प्रक्रियाओं को धता को बताकर एनकाउंटक की बुल्डोजर पर सवार है, जिसमें अपरधियों की जाति और धर्म देखकर न्याय किया जाता है। क्या आपको भी लगता है कि पुलिस को इस तरह की कार्रवाइयां सही हैं और अगर सही हैं तो कितनी सही हैं। आप इस मसले पर क्या सोचते हैं हमें बताइये अपनी राय रिकॉर्ड करके, भले ही इस मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में
नए नए आजाद हुए देश के प्रधानमंत्री नेहरू एक बार दिल्ली की सड़कों पर थे और जनता का हाल जान रहे थे, इसी बीच एक महिला ने आकर उनकी कॉलर पकड़ कर पूछा कि आजादी के बाद तुमको तो प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गई, जनता को क्या मिला, पहले की ही तरह भूखी और नंगी है। इस पर नेहरु ने जवाब दिया कि अम्मा आप देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़ पा रही हैं यह क्या है? नेहरू के इस किस्से को किस रूप में देखना है यह आप पर निर्भर करता है, बस सवाल इतना है कि क्या आज हम ऐसा सोच भी सकते हैं?
उत्तरप्रदेश राज्य के जिला झाँसी से विकेश कुमार प्रजापति , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि समाज को आगे बढ़ाना चाहते है। समाज को मार्गदर्शन देना चाहते है। कई पोलिटिकल पार्टियां आई लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। उनको समाज की सेवा करना है। वह किसी राजनितिक पार्टियों के साथ नहीं जाना चाहते है।
समाज कि लड़ाई लड़ने वाले लोगों के आदर्श कितने खोखले और सतही हैं, कि जिसे बनाने में उनकी सालों की मेहनत लगी होती है, उसे यह लोग छोटे से फाएदे के लिए कैसे खत्म करते हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति ने इस तरह काम किया हो, नेताओं द्वारा तो अक्सर ही यह किया जाता रहा है। हरियाणा के ऐसे ही एक नेता के लिए ‘आया राम गया राम का’ जुमला तक बन चुका है। दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं? आपको क्या लगता है कि हमें अपने हक की लड़ाई कैसे लड़नी चाहिए, क्या इसके लिए किसी की जरूरत है जो रास्ता दिखाने का काम करे? आप इस तरह की घटनाओं को किस तरह से देखते हैं, इस मसले पर आप क्या सोचते हैं?
उत्तरप्रदेश राज्य के झाँसी ज़िला से विकेश प्रजापति ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि आज के समय में हर धर्म के लोग एक सामान है। दूकान के दूकानदार और उसके कर्मचारी के धर्म और नाम को दूकान के बाहर लगाना शोभा नहीं देता है। यह धर्म और आस्था से अलग है। हमारा देश एकता का सन्देश है। कोई भी किसी भी दूकान से सामान ले सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश को वापस लेने को लेकर सरकार को बोला गया है
भारतीय संविधान किसी के आर्टिकल 14 से लेकर आर्टिकल 21 तक समानता की बात कही है, इस समानता धार्मिक आर्थिक राजनीतिक और अवसर की समानता का जिक्र किया गया है। इस समानता किसी प्रकार की जगह नहीं है और किसी को भी धर्म, जाति और समंप्रदाय के आधार पर कोई भेद नहीं किये जाने का भी वादा किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार के हालिया फैसले में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि वह धर्म की पहचान के आधार भेदभाव पैदा करने की कोशिश है।दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं? क्या आप सरकार के फैसले के साथ हैं या फिर इसके खिलाफ, जो भी हो इस मसले पर आपकी क्या राय है? आप इस मसले पर जो भी सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें
उत्तरप्रदेश राज्य के जिला झाँसी से विकेश कुमार प्रजापति , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि उनको शादी को लेकर जो कार्यक्रम चल रहा है उनको बहुत अच्छा लगा। वास्तविकता यही है की आप कितनी ही खुशियां दिखा ले जबतक समाज का और एक सभ्य समाज में कुछ अच्छे कार्य , शिक्षा , गरीबी उन्मूलन पर एसे कार्य न किया जाए तो इस तरह से पैसा पानी न बहाया जाये। हम उन परिवारों का हिस्सा क्यों नहीं हो सकते जिन्होंने अपने पिता को खो दिया है, जिन्होंने अपनी माताओं को खो दिया है, जिन्होंने लॉकडाउन में अपना सब कुछ खो दिया है, जिनकी बेटियों की शादी इस देश के अलग-अलग शहरों में, अलग-अलग गांवों में की जा सकती है। या तो ऐसा करें, यह सबसे बड़ा सर्वधर्म है कि एक लड़की को पीला हाथ दान करने से आपको जीवन में इतनी खुशी मिलेगी कि ये उपलब्धियां दर्शाती हैं कि अपने आप में एक उपलब्धि है, देश में एक रिकॉर्ड है।
मोटाभाई ने महज एक शादी में जितना खर्च किया है, वह उनकी दौलत 118 बिलियन डॉलर का 0.27 है। जबकि उनकी दौलत कृषि संकट से जूझ रहे देश का केंद्रीय बजट का 7.5 प्रतिशत से भी कम है। जिस मीडिया की जिम्मेदारी थी कि वह लोगों को सच बताएगा बिना किसी का पक्ष लिए, क्या यह वही सच है? अगर हां तो फिर इसके आगे कोई सवाल ही नहीं बनता और अगर यह सच नहीं तो फिर मीडिया द्वारा महज एक शादी को देश का अचीवमेंट बताना शुद्ध रूप से मुनाफे से जुड़ा मसला है जो विज्ञापन के रुप में आम लोगों के सामने आता है। क्योंकि मीडिया का लगभग पचास प्रतिशत हिस्सा तो मोटाभाई का खुद का है और जो नहीं है वह विज्ञापन के लिए हो जाता है "कर लो दुनिया मुट्ठी में” की तर्ज पर। दोस्तों, इस मुद्दे पर आप क्या सोचते है ?अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाईलवाणी पर, अपने फोन से तीन नंबर का बटन दबाकर या फिर मोबाईल का एप डाउनलोड करके।