मतदाता जागरूकता अभियान जिला मुख्यालय तक ही सीमित मतदान के दिन खुलती है मतदाता जागरूकता अभियान की पोल मौत का कुआं,सर्कस में एक खेल खेला जाता है। जिसमें कुएं के आकार का एक पिंजरा बनाया जाता है। इस पिंजरे के अंदर मोटरसाइकिल चालक अपना कौशल दिखता है। दर्शक इस कला को देखकर ताली बजाने को मजबूर हो जाते है। आज ऐसा ही खेल स्वयंसेवी संस्थाएं वा प्रशासन के नुमाइंदे खेल रहे है। स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी योजनाएं हो या फिर किसानो की हित की योजनाये सभी जिला अधिकारी कार्यालय तक ही सीमित रहती यदि संबंधी अधिकारियों की इच्छा हुई तो बच्चों की एक रैली निकालकर प्रचार प्रसार का अंत कर दिया जाता है। ऐसा ही कुछ मतदाता जागरूकता अभियान को सर्कस रूपी कुए के अंदर ही खेलने का काम किया जा रहा है। कहने का मतलब यही है कि जिला मुख्यालय के अलावा ऐसी योजनाओं को ग्रामीण इलाको तक पहुंचाया नहीं जा रहा है। जिससे योजनाएं अपने उद्देश्य को पूरा ही नहीं कर पाती। इन दिनों मतदाता जागरूकता अभियान को लेकर काफी शोर मचाया जा रहा है सरकारी स्तर पर हो या फिर स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया जाने वाला प्रचार प्रसार जो एक सीमा के अंदर बंधा नजर आ रहा है। शपथ भी आपस में ही दिलाई जा रही है। हस्ताक्षर अभियान जिला मुख्यालय में चला कर मतदाता जागरूकता अभियान का अंत कर दिया जाएगा। जिस अभियान की जरूरत ग्रामीण इलाकों में होनी चाहिए वह इलाके पूरी तरह से अछूते रहते हैं। संबंधित सरकारी कर्मचारी हो या ऐसे अभियानो का ठेका लेने वाले स्वयंसेवी संस्थाएं सभी मौत के कुएं की तरह ही हैं जो सर्कस में बनाए गए इस कुएं में अपना कौशल दिखाने का काम कर रहे हैं। जिसके कारण ही पंचायती चुनाव हो या फिर लोकसभा व विधानसभा के चुनाव सभी चुनाव में अक्सर यह देखा जाता है कि तमाम जीवित लोगों के नाम मतदाता सूची में नहीं रहते जबकि जिनकी मौत हो चुकी होती है उनके नाम मतदाता सूची में नजर आते हैं सर्कस रूपी कुएं के अंदर खेले गए खेल के कारण ही इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है। सवाल तो स्वयंसेवी संस्थाओं के अलावा सरकारी नुमाइंदों से पूछा जाना चाहिए कि मतदाता जागरूकता अभियान को ग्रामीण इलाकों तक क्यो नहीं पहुंचाया जा रहा है। जिससे मतदान के दिन लगने वाले आरोपी से बचा जा सके।