बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से सलोनी कुमारी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं के जागरूकता का उल्लेख करते हुए एक समाज सेवी ने जानकारी दिया कि कैसे संपत्ति हस्तांतरण की प्रक्रिया में शामिल आधिकारी तबका अपनी पितृसत्तात्मक मानसिकता के कारण महिलाओं की अपीलों को नजरअंदाज करता है। वे आगे जोड़ते हैं कि ‘बेटियों को पैतृक संपत्ति में विरासत का अधिकार हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 से ही दिया गया था। इस प्रावधान के लागू होने से पहले, महिलाओं को अक्सर लंबी कानूनी प्रक्रियाओं को अपनाकर, ऐसी भूमि पर अपने अधिकार के लिए लड़ना पड़ता था।’ आज, महिलाओं के भूमि अधिकारों को मुख्यधारा में लाने की मांग करने वाले संगठनों को यह चुनौतीपूर्ण लग सकता है क्योंकि महिलाओं के बीच संपत्ति का स्वामित्व परंपरागत रूप से अस्तित्वहीन या नगण्य रहा है।। आज भी महिलाएं दिन-रात भूमि में काम करती नज़र आती हैं ,फिर भी भूमि के हक़ से वे वंचित हैं। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।
