बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला से सलोनी कुमारी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत में महिलाओं के भूमि अधिकारों का अध्याय, स्वाधीनता के सात दशकों के बाद भी अब तक अपूर्ण है। इसका एक अर्थ यह है कि आधी आबादी की 'स्वाधीनता' अब तक अधूरी है। और इसके निहितार्थ यह भी हैं कि भारत में महिलाओं की 'स्वाधीनता' स्वयं समाज और सरकार ने कमतर कर दी है।लेकिन जवाब आखिर कहां और किसके पास होने चाहिए? क्या समाज और सरकार के समक्ष महिलाओं को यह साबित करना होगा कि वह भी 'समानता' के संवैधानिक दायरों में शामिल हैं? क्या महिलाओं को सार्वजनिक रूप से प्रमाणित करना होगा कि ‘संपत्ति और भूमि’ में कानूनन उनका भी आधा हिस्सा है? इन मुद्दों पर महिलाओं को पूरी तरह से जागरूक होना होगा और अपने भूमि हक़ के लिए लड़ना होगा। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।