प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह जिस भी देश, काल, स्थिति, वर्ण, समुदाय, भाषा अथवा प्रज्ञा से युक्त हो सनातन धर्म की किसी न किसी परंपरा के अंतर्गत सम्मिलित होकर अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।