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संपूर्ण विश्व में प्रकृति और पुरूष अर्थात जड़ और चेतन दो तत्वों की सत्ता है। इन दो गुण धर्मो से पृथक किसी तीसरे तत्व की अनुभूति किसी को नहीं होती। परंपरा से चली आरही कहानियों पर भरोसा कर मनुष्य पूर्वग्रहरहित और निष्पक्ष होकर प्रकृति के गुण धर्मो का अध्ययन नहीं करना चाहता। क्यों कि इससे उसके दैवीय कल्पना का महल ध्वस्त होन लगता है। इस लिए वह परंपरा में मिली बातों पर भरोसा करने लगता है। भूत-प्रेत, जिन्द, चुडैल, मरी-मशान, ब्रम्ह राक्षस आदि का कही कोई अस्तित्व नहीं है। फिर भी परंपरा में सुनी सुनाई बातो एवं अज्ञानवश मनुष्य भू-प्रेत आदि के भ्रम में पड़ा हुआ है श्री लंका के डाॅ अब्राहम कोवूर और अमेरिका के जेम्स रैंडी ने भूत के दावेदारों को खुल चुनौती दे रखी थी । अमेरिका में दि कमेटी फाॅर दिसाइंटिफिक इन्वेस्टीगेशन ऑफ दि क्लेम्स ऑफ दि पैरानाॅर्मल नाम की वैज्ञानिक संस्था ने भूत के तत्थों को बेनकाब किया है। आज तक तमाम दावेदार भूत का अस्तीत्व होने की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए है। महाराष्ट्र की अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निमूर्लन समिति भूत दिखाओ 21 लाख का इनाम ले जाओं घोषणा करते आ रही है लेकिन आब तक काई भूत नहीं दिखा पाया है।
ग्राम वाणी की इंटरव्यू सीरीज "क्या हाल विधायक जी, में आज हमारे साथ हैं नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 121 से विधायक श्रीमती सुनीता पटेलl श्रीमती सुनीता पटेल पिछले पांच वर्षों से गाडरवारा से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रही हैंl
समाज में बढ़ते आधुनिकतावाद में आस्था व अंघविश्वास से जुड़े विषय भी फैशन का जगह ले लेते है। पैर में काला धागा बांधने का समाज में फैशन सा चल पड़ा है। माना जाता है कि पैरों में काला धागा पहनने से बुरी नजर नहीं लगती है। इस के साथ नकारात्मक उर्जा कोसों दूर रहती है, जिस से स्वास्थ्य और तरक्की पर बुरा असर नहीं पड़ता है। काला धागा पांव में बांधने के वर्तमान में चाहे जो भी कारण हो लेकिन यह हमारी अंधविश्वासी सोच व मानसिकता गुलामी को दर्शाता है। आज भले शुद्रों को अपनी पहचान के लिए काला धागा नहीं बांधना पड़ रहा हो लेकिन ज्यादातर लोग बुरी आत्मा, बुरी शक्तियों से बचने अपने पांव में काला धागा बांध रहे है। 21 वी सदी के वैज्ञानिक युग में भी हम पुरानी दकियानुसी, गुलामी या जातियों के श्रेणी में अछुत होने की पहचान रखने का काला धागा अपने पांव में बांध रहे है।
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सवाल है कि जिस कानून को इतने जल्दबाजी में लाया जा रहा हैं उसके लागू करने के लिए पहले से कोई तैयारी क्यों नहीं की गई, या फिर यह केवल आगामी चुनाव में राजनीतिक लाभ पाने के दृष्टिकोण से किया जा रहा है।
गठबंधन द्वारा बैन किये जाने के बाद के सबसे पहला विरोध इन एंकरों की तरफ से आया ‘जिन्होंने नाखून कटाकर शहीद होने की घोषणा कर दी’, खुद पर लगाए बैन को आपातकाल घोषित कर पत्रकारिता पर हमला तक करार दे दिया। जिन 14 एकंरों पर बैन लगा उनमें से ज्यादातर ने बैन वाले दिन भी अपने प्रोग्राम किये, और अपने प्रोग्राम में विपक्ष द्वारा लगाए गये बैन को गलत बताया लेकिन उनमें से किसी एक ने भी यह बताने कि हिम्मत नहीं कि बैन लगाए जाने के पीछे का कारण क्या है? जबकि दर्शकों को यह बात सबसे पहले बताई जानी चाहिए थी जबकि यह पेशगत ईमानदारी से जुड़ा मसला है।
1947 में जब भारत को आजादी मिली तब सबसे पहला सवाल यही था कि देश का नाम क्या होगा? इसके लिए संविधान सभा ने गहन विचार-विमर्श किया, इस पर कई अलग-अलग बहसें हुईं, कई नामों के प्रस्ताव आए, वोटिंग कराई गई। इस सब के बाद इसका नाम भारत और इंडिया माना गया, उसके बाद देश को नाम मिला ‘India that is Bharat’ इस बात को संविधान के पहले अनुच्छेद में ही स्पस्ट कर दिया गया कि जो इंडिया है वही भारत है। हमारे पूर्वज देश का नाम चुनने को लेकर इतनी मेहनत पहले ही कर चुके हैं, तब 75 साल से ज्यादा के बाद नाम बदलने का फैसला करना या फिर उसके बारे में सोचना कितना सही है।
बीते अगस्त की आखिरी शाम को खबर आई कि सरकार सितंबर महीने की 18-22 तारीख को संसद के विशेष सत्र का आयोजन करेगी, संसदीय कार्य मंत्री ने घोषणा की, लेकिन इस विशेष सत्र का एजेंडा क्या है वह नहीं बताया। विशेष सत्र के आयोजन की खबर के बाद से मीडिया से लेकर राजनीति के हर हल्के में कानाफूसी है कि सरकार ये कर सकती है, वो कर सकती है लेकिन पुख्ता तौर पर कोई भी जानकारी किसी के पास नहीं है कि सरकार क्या करने जा रही है।