किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें
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उत्तर प्रदेश में कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से आंगनवाड़ी के तहत सूखा राशन दिया जाता है, जिसे अनुपूरक पुष्टाहार कहते हैं। यह पुष्टाहार 6 महीने से 6 साल तक के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं कुपोषित बच्चों और 11 से 14 साल की किशोरियों को दिया जाता है। लेकिन सरकार के निर्देशों का पलीता लगाने में जुटी है आंगनवाड़ी कार्यकर्ता। जनकारी के मुताबिक़ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा बार बार लापरवाही बरतने के कारण महिलाओं ने आवाज उठाई। कुशीनगर जिले के विशुनपुरा थाना क्षेत्र के ग्राम सभा अमही आंगनबाड़ी केंद्र पर बच्चों व गर्भवती लाभार्थियों को ड्राई राशन व दाल, चावल, रिफाइंड तेल आदि के वितरण में लापरवाही को लेकर गांव की महिलाओं ने प्रदर्शन किया। प्रत्येक माह लाभार्थियों को निर्धारित मात्रा में चावल, गेहूं व दाल का वितरण स्वयं सहायता समूह एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के हाथों वितरित करने का शासन से फरमान जारी हुआ था। इसमें बच्चों व गर्भवती महिलाओं को देशी घी व मिल्क पाउडर, रिफाइंड तेल, चावल, दाल आदि चीजों का वितरण भी किया जाना है। इसके बावजूद कुशीनगर जिले के दुदही ब्लाक के अमही में लाभार्थियों को राशन नहीं मिल पाया है। जिसको लेकर गांव की दर्जनों महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया। गांव के कोटेदार की मानें तो गांव में राशन का उठान आंगनबाड़ी द्वारा बराबर किया गया है। लेकिन लाभार्थी राशन के लिए आंगनबाड़ी केंद्र के चक्कर काटने को विवश हैं। महिला का आरोप है की आंगनबाड़ी कार्यकत्री सरोज देवी पिछले 6 माह से किसी को राशन नही दे रही है सारा राशन ब्लैक मार्केट में बेच दे रही है। इस मौके पर रोजा खातून, समीना खातून बच्चे का नाम रेहान, समेत दर्जनों महिलाए अपने बच्चो के साथ मौजूद रहे।
जनपद कुशीनगर के दुदही ब्लॉक अन्तर्गत दुदही सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र परिसर में आशा बहनों द्वारा छः सुत्रीय मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया गया और सीएचसी प्रभारी को ज्ञापन सौंपा गया। पिछले कई वर्ष से उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन अपनी बुनियादी मांगों और समस्याओं को विभिन्न तरीकों से उठाकर आपसे समाधान की याचना करती रही है। किंतु बार बार ध्यान आकर्षित करने के बावजूद कोई आशा कर्मियों के प्रश्न को सुनने को भी तैयार नहीं है, उनके ऊपर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है, किंतु उनको दिए जाने वाली प्रोत्साहन राशियों का अता पता नहीं रहता। 50 से अधिक काम लिए जाते हैं, उनका कोई भुगतान उन्हें नहीं मिलता। जिन दो चार कार्यों की प्रोत्साहन राशियां दी भी जाती हैं, उनका निर्धारण वर्षों पूर्व किया गया था, उनके श्रम के सापेक्ष उन दरों कमी कोई पुनर्निर्धारण नहीं किया गया। ज्ञातव्य है कि भविष्य निधि, बेड्युटी, किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा, यहां तक की साप्ताहिक वार्षिक वार्षिक अवकाश तथा एक दिन का भी मातृत्व अवकाश तक नही दिया जाता। इन्ही समस्याओं के समाधान के लिए विवस होकर पुनः आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। आज आल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय आह्वान पर अपनी मांगो की और आपका ध्यान आकर्षित करते हुए यह ज्ञापन प्रस्तुत है। 1_ 45 वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुरूप संगिनी और आशा कर्मियों को राज्य स्वास्थ्यकर्मी के रूप में मान्यता देकर उन्हें न्यूनतम वेतन, मातृत्व अवकाश कार्यस्थलों में सुरक्षा की गारंटी की जाय और जब तक इसका क्रियान्वयन न हो तब तक आशा और संगिनी को मिलने वाली राशि को प्रोत्साहन राशि के बजाय उसे मानदेय के रूप में संबोधित किया जाय। तथा उसके भुगतान की प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन करते हुए स्थाई भुगतान न्यूनतम वेतन के बराबर किया जाय । 2_46 वे भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश के अनुसार सभी आशा कर्मियों व संगीनियो को कर्मचारी भविष्यनिधि ( ई पी एफ) व राज्य कर्मचारी बीमा निगम (ईएसआई) का सदस्य बनाया जाय वा विना पेंशन व ग्रेच्युटी के भुगतान किसी भी आशा कमी को सेवा से निवृत न किया जाए। ज्ञातब्य की हरियाणा में सेवा निवृत्ति पर 2 लाख ग्रेड्यूटी के रूप में भुगतान का प्रावधान किया गया है। 3_ वर्ष 2015से सब तक सेवा के दौरान दुर्घटनाओं में और अन्य कारणों से जान गंवाने वाली आशा व आशा संगीनियो के आश्रित को 20 लाख मुवावज़ा दिया जाए, व अशक्त हो गई आशा व संगीनियों को 10,000/ रु मासिक पेंशन दी जाय। 4_सभी आशा व आशा संगीनियों को रु 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा व रु 50 लाख का जीवन बीमा कवर दिया जाए । 5_ सरकार व राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा कार्य योजना बनाते समय मानव क्षमता के अनुरूप वैज्ञानिक आधार पर कार्य निर्धारण किया जाय। साथ ही आशा और संगिनी के कार्य की सीमा और कार्य के घंटे निर्धारित किए जाएं। 5_ आशा व आशा संगिनी को साप्ताहिक अवकाश, त्योहारी व राष्ट्रीय अवकाश सुनिश्चित किए जाएं। मौके पर आशा रीता पटेल ( जिलाध्यक्ष ) गीता सिंह कोषाध्यक्ष, सबिता सिंह महामंत्री, सुनीता सिंह सचिव, शीला राय आशा संगिनी, उर्मिला कुशवाहा, शांति देवी, किरण शर्मा, कुम कुम, शैलेश देवी, अनिता यादव, अनिता कुशवाहा, सुनैना, पूनम पटेल, मेनिका, शंध्या, गीता, सबिता, अनिता,मनोरमा, रीता मिश्रा, रीता राय, ममता राय, सुभावती राय, रूबी, अंजलि राय, सुगंती, एव समस्त आशाएं उपस्थित रही।
हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार बीस तीन सालों में दुनिया के पांच बड़े व्यापारियों की संपत्ति में दोगुने से ज्यादा का इजाफा हुआ है, जिस समय इन अमीरों की दौलत में इजाफा हो रहा था, ठीक उसी समय पांच मिलियन लोग गरीब से और ज्यादा गरीब हो रहे थे। इससे ज्यादा मजे की बात यह है कि हाल ही में दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की बैठक में शीर्ष पांच उद्योगपतियों ने एक नई रणनीति पर चर्चा और गठबंधन किया।
दोस्तों, दुनिया भर में काम के घंटे घटाए जाने की मांग बढ़ जा रही है, दूसरी तरफ भारत काम के घंटों को बढ़ाए जाने की सलाह दी जा रही है। भारत में ज्यादातर संस्थान छ दिन काम के आधार पर चलते हैं, जिनमें औसतन 8-9 घंटे काम होता है, उस हिसाब से यहां औसतन पैंतालिस घंटे काम किया जाता है। जबकि दुनिया की बाकी देशों में काम के घंटे कम हैं, युरोपीय देशों में फ्रांस में औसतन 35 घंटे काम किया जाता है, ऑस्ट्रेलिया में 38 घंटे औसतन साढ़े सात घंटे काम किया जाता है, अमेरिका में 40 घंटे, ब्रिटेन में 48 घंटे और सबसे कम नीदरलैंड में 29 घंटे काम किया जाता है। दोस्तों, बढ़े हुए काम घंटों की सलाह देना आखिर किस सोच को बताता है, जबकि कर्मचारियों के काम से बढ़े कंपनी के मुनाफे में उसका हक न के बराबर या फिर बिल्कुल नहीं है? ऐसे में हर बात पर देशहित को लाना और उसके नाम पर ज्यादा काम की सलाह देना कितना वाजिब है? इस मसले पर अपना राय को मोबाईल वाणी पर रिकॉर्ड करें और बताएं कि आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, आप भले ही मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में, इसे रिकॉर्ड करने के लिए दबाएं अपने फोन से तीन नंबर का बटन
दोस्तो, आज अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस है... यह दिन खासतौर पर उन महिलाओं को समर्पित है... जो काम तो पुरुषों के बराबर करती हैं पर जब वेतन की बात आती है तो उन्हें कम आंका जाता है... क्या आप भी ऐसी परिस्थितियों से गुजरे हैं? इस खास दिन पर आपके क्या विचार है.. फोन में नम्बर 3 दबाकर रिकॉर्ड करें.