साथियों यह बात बिल्कुल सही है कि सामाजिक जागरूकता सजगता से ही आपसी सौहार्द्र का ताना-बाना बचा रहेगा। किंतु भले ही आज हम 21 सदी में जी रहे हैं, हमारी सोच का दायरा संकुचित होता जा रहा है, आज समाज का हाल और इंसानों की विकृत मानसिकता से सामाजिक विवादों का दायरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोगों में अब पहले जैसी उदारता करूणा दया सहयोग जैसी भावनाएं कम होती जा रही हैं। आप ने अपने आसपास लोगों को यह कहते हुए जरूर सुना होगा कि "आज इंसान अपने दु:ख से कम दु:खी है किन्तु अपने पड़ोसी के खुशहाल होने का दु:ख उसे ज्यादा है।" साथियों यह बदलाव अचानक एक ही दिन में हो गया हो ऐसा कत्तई नहीं है। दरअसल हमारी सोच और विचारों की संकिर्णता का दायरा तेजी से संकुचित हुआ है। अस्पृश्यता अर्थात छुआछूत और ऊंच नीच का भेदभाव दूर करने के लिए पूरी दुनियां के सामाजशास्त्रियों और विवेकवान उदार विचारों वाले महान लोगों ने एक साथ मिलकर प्रयत्न किए। ऐसा शिक्षा संस्कार और उच्च नैतिक मूल्यों के कारण ही संभव हो सका। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक भजन गाया करते थे "ईश्वर अल्ला तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान" आप को याद होगा बचपन में हम सब ने भी यह गीत जरूर गुनगुनाया होगा। यह गीत सिर्फ एक गीत नहीं बल्कि सामाजिक सद्भाव समरसता बढ़ाने वाला एक अचूक मंत्र अथवा नुस्खा साबित हुआ था। फिर आखिर ऐसी कौन सी वजह आ पड़ी कि अचानक यूपी सरकार को कांवड़ यात्रा के मार्गों पर पड़ने वाली दुकानों के दुकानदारों को अपने नाम लिखने का फरमान जारी करना पड़ा। आइए हम बताते हैं आपको इसकी मूल वजह दरअसल आज के अर्थ प्रधान युग में पैसा कमाना नैतिक मूल्यों की रक्षा से कहीं अधिक जरूरी हो चला है। सनातन धर्म में पवित्रता को वरियता दी गई है, पवित्र सावन महीने में करोड़ों लोग अपने घरों में मांसाहार तथा लहसुन प्याज भी खाना भी छोड़ देते हैं। सनातन धर्म संस्कृति में गाय भैंस का ऐसा दूध जो कि नया बच्चा देने वाली गाय भैंस का हो कुछ दिनों तक अपवित्र माना गया है कोई भी सनातन धर्म को मानने वाला व्यक्ति किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में अथवा चाय बनाने और पीने में भी ऐसे दूध का प्रयोग नहीं करता किंतु सभी धर्मों में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। इसी प्रकार मांसाहार पकाने वाले बर्तनों को भी अपवित्र माना गया है। ऐसे में कांवड़ यात्रियों को लगातार ऐसी शिकायतें मिल रही थीं कि उनकी धार्मिक आस्था और श्रद्धा भक्ति को चोट पहुंचाने के लिए कुछ लोग जानबूझ कर अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए प्रभावित कर रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि मांसाहार पकाने वाले दुकानदार भी शुद्ध शाकाहारी भोजन देने का दावा करने वाला बोर्ड लगा कर उनकी आस्था को चोट पहुंचाने का काम कर रहे हैं। दुकानों के नाम बदलकर धार्मिक यात्रियों को भ्रमित करने का काम किया जा रहा है। ऐसी शिकायतों को लगातार बढ़ता देख कर सरकार और प्रशासन को इस तरह का फैसला लेना पड़ा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ऐसी बाध्यता खत्म हो गई है। किंतु अपने व्यक्तिगत हित लाभ के लिए दूसरे धर्म के लोगों को भ्रमित करने तथा सौहार्द्र बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार लोगों की कुत्सित कुंठित मानसिकता को बदलने की चिंता मानवीय सामाजिक सभ्यता संस्कृति संस्कारों तथा नैतिक मूल्यों के ह्रास का अहम प्रश्न अभी भी अनुत्तरित ही है।

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों के नाम लिखने के सरकार के आदेश ने हलचल मचा दी है। यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कांवड़ मार्गों पर खाद्य दुकानों पर संचालन मालिक का नाम और पहचान लिखना अनिवार्य है। इसके पीछे का कारण यह है कि खाने की दुकानों का नाम कुछ और होता है और इसे चलाने वाले अन्य लोग होते हैं। लोग ट्रेनों से उतरते हैं और पैदल संगम जाते हैं। यहाँ कई चाय और नाश्ते की दुकानें हैं जिन्हें जनता प्रयाग मिलन नाम दिया गया है लेकिन इन्हें चलाने वाली दुकानों पर नाम लिखना जरूरी है

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उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अनुराधा श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि भारत गाँवों का देश है जिसमें सत्तर प्रतिशत गाँव शामिल हैं और उस गाँव की मजबूत कड़ी महिलाएं हैं। आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, जिसका उद्देश्य ज्यादातर शहरों में देखा जाता है, लेकिन हमारे गांव की महिलाएं अभी भी आजाद नहीं हैं। कुछ भी करने की स्वतंत्रता नहीं है, यह हर चीज के लिए पुरुषों पर निर्भर है। भूमि का अधिकार सरकार की पहली प्राथमिकता है क्योंकि जब हमारी महिलाओं को भूमि का अधिकार मिलता है, तो यह उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत करता है। अगर उन्हें जमीन मिलती है, तो वे इसकी खेती कर सकते हैं, इसमें विभिन्न प्रकार की फसलें उगा सकते हैं, इसे बेच सकते हैं और आर्थिक रूप से मजबूत हो सकते हैं, जिससे वे अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है, इससे उनका भविष्य भी मजबूत होगा, उनके बच्चे उसी भूमि के लिए उनके आदर्श बनेंगे। आज कितने माता-पिता को उनके बच्चे बाहर निकाल देते हैं, वे भी अपना जीवन अनाथ के रूप में जी रहे हैं। लेकिन इतनी मेहनत करने के बावजूद हमारी महिलाएं आज बहुत पीछे हैं। पुरुष वर्ग चाहता है कि वे घर का काम और बच्चे संभाले ।इससे महिलाओं की आगे बढ़ने की क्षमता कम होती है, उन्हें भी आगे बढ़ने की जरूरत होती है। हम बेटियों को पढ़ाते हैं,लिखाते हैं उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन उनके पास जो भी हिस्सा है उन्हें दें ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके.यह शहर में ठीक है लेकिन गाँव की महिलाओं को आगे बढ़ाने का उद्देश्य निर्धारित करें और जब गाँव आगे बढ़ेंगे तो हमारा देश विकास करेगा, गाँवों का विकास होगा और शहरों का भी विकास होगा।

उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं से यह पूछने पर कि उनके लिए भूमि का क्या अर्थ है। बातचीत इस बिंदु पर पहुंचती है कि महिलाओं की गरिमा जमीन से कैसे जुड़ी है यहाँ तक की जमीन का मालिक होने का विचार ही महिलाओं को आश्चर्य में डालना है।और सशक्त बनाने के लिए बाध्य हो सकता है। शायद इसलिए कि भूमि एक बड़ी संपत्ति है, महिलाओं को न केवल उनके भूमि अधिकारों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए, बल्कि यह भी बताया जाना चाहिए कि उनकी गरिमा इस अधिकार से कैसे जुड़ी हुई है। इससे वे भूमि को अपने सम्मानजनक जीवन जीने का माध्यम समझ पायेंगी जिसकी उन्हें आकांक्षा भी होती है और जिस तक पहुँचा भी जा सकता है।

उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं और समाज के अन्य वंचित वर्गों और वर्गों के भूमि अधिकारों की उपेक्षा। भूमि उन स्थानों पर लोगों की पहचान करने का एक महत्वपूर्ण साधन है जहाँ भूमि के अधिकार दिए गए हैं महिलाओं को स्वतंत्र अधिकार नहीं देने से वे एक व्यक्ति के रूप में अदृश्य बना देती हैं। इस तथ्य जैसे दृश्य कि सभी मौजूदा विरासत कानून बैनवी भाषा में लिखे गए हैं, जब हम इन पर विचार करते हैं तो ट्रांस समुदाय के लिए अपने भूमि अधिकारों का दावा करने की गुंजाइश कम हो जाती है। यदि लोगों के साथ उचित सम्मान के साथ व्यवहार नहीं किया जाता है तो लोगों को अपनी पहचान खोने का खतरा है और इसका सीधा प्रभाव उनकी आजीविका, आवास सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता पर पड़ता है। भूमि अधिकार पर काम करने के लिए पहला कदम महिलाओं को स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में मान्यता देना होता है

उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोरी सिंह मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि उत्तर प्रदेश में सरकार की कांवर यात्रा के मार्ग पर सद्भाव की एक दुकान को बचाएगी दुकानदारों और ढाबा मालिकों को दुकान के सामने नेम प्लेट लगाने का आदेश दिया गया है। बाराबंकी ने ऐतिहासिक महादेव धाम में आने वाले दुकानदारों और राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों को अलग कर दिया है। रामनगर क्षेत्र में ऐतिहासिक धार्मिक स्थल महादेव धाम में नेमप्लेट लगाने के सरकार के फैसले पर दुकानदारों की मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। नाका चौराहे पर तीस साल से इसे बेच रहे एक पेठा विक्रेता ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है, जबकि चालीस साल से इसे बेच रहे एक आम विक्रेता का कहना है कि सरकार सुरक्षित है। दुकानदारों के लिए एक नया फरमान है लेकिन जो भी आदेश मिलता है उसका पालन करना पड़ता है, जबकि स्वीटश के मालिक का कहना है कि सरकार ने कोई नया निर्णय नहीं लिया है। सभी दुकानदारों को रामनगर में अपनी दुकान का नाम लिखना चाहिए।

इस एपिसोड में जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों को एक किसान परिवार की कहानी के माध्यम से दिखाया गया है। बदलते मौसम पैटर्न, अनियमित वर्षा, और कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा की गई है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए समुदाय-स्तर पर कार्रवाई करने का आह्वान किया गया है।

पानी में आर्सेनिक, लोह तत्व और दूसरे घातक पदार्थों की मात्रा महिलाओं के स्वास्थ्य पर सबसे बुरा असर कर रही है और फिर यही असर गर्भपात, समय से पहले बच्चे का जन्म या फिर कुपोषण के रूप में सामने आ रहा है. साथियों, हमें बताएं कि आपके परिवार में अगर कोई गर्भवति महिला या नवजात शिशु या फिर छोटे बच्चे हैं तो उन्हें पीने का पानी देने से पहले किस प्रकार साफ करते हैं? अगर डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों और महिलाओं को पीने का साफ पानी दें, तो आप उसकी व्यवस्था कैसे कर रहे हैं? क्या आंगनबाडी केन्द्र, एएनएम और आशा कार्यकर्ता आपको साफ पानी का महत्व बताती हैं? और ये भी बताएं कि आप अपने घर में किस माध्यम से पानी लाते हैं यानि बोरवेल, चापाकल या कुएं और तालाबों से?

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...