उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अनुराधा श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि लैंगिक असमानता लिंग के आधार पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को दर्शाता है और पारंपरिक रूप से महिलाओं को घर और समाज दोनों में समाज के एक कमजोर वर्ग के रूप में देखा जाता है। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया भर में प्रचलित है। भारतीय समाज में महिलाओं को अक्सर घरेलू काम के लिए उपयुक्त माना गया है। घर में महिलाओं का मुख्य कार्य भोजन की व्यवस्था करने और बच्चों की परवरिश तक सीमित हैं। यह अक्सर देखा गया है कि घर के लिए लिए गए निर्णयों में महिलाओं की कोई भूमिका नहीं होती है
उत्तर प्रदेश राज्य के बहराइच जिला से अनुराधा श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि हमारे देश में हाल ही में एक शादी हुई थी जिसमें लगभग पांच हजार सौ करोड़ रुपये खर्च हुए हैं और हमारा दुर्भाग्य है कि जुलाई के महीने में जिओ का रिचार्ज डेटा की कीमतें बढ़ा दी गई हैं, जिससे जनता नाराज है। देश के किसान अच्छी तरह से खेती नहीं कर पा रहे हैं, अपनी बेटियों की शादी नहीं कर पा रहे हैं। वे दिन-रात मेहनत करते हैं और जब उनको मेहनत का फल नही मिल पता है तो,पैसों के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। मीडिया उद्योगपतियों की शादियों का प्रचार करने में लगी हैं।
शब्द को साक्षात परम् ब्रम्ह अर्थात ईश्वर का स्वरूप माना गया है। शब्दों को हमारे विचारों की मुद्रा भी कहा गया है। इन शब्दों में अद्भुत अतुलनीय शक्ति होती है। शब्दों से बने मंत्रों से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। शब्दों का अपना कोई आकार नहीं होता। फिर भी मनुष्य के मन पर इन शब्दों का बहुत ही व्यापक और अमिट प्रभाव पड़ता है। शब्द हमारे जीवन की दशा और दिशा बदलने में सक्षम होते हैं। इतिहास में ऐसे लाखों प्रमाण मिलते हैं जिसमें कि शब्दों के रूप में प्राप्त हुए उपदेशों, व्यंग्य और चुनौतियां बड़ी घटनाओं का कारण बनीं। शब्द हमारे मानसिक पटल का दर्पण माने गए हैं, अर्थात शब्दों के उच्चारण और उनके प्रस्तुतिकरण से ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है। जिस प्रकार एक वाद्य यंत्र की पहचान उसके स्वर से होती है, ठीक उसी तरह व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी के माध्यम से बोले गए शब्दों के द्वारा होती है। शब्दों के प्रयोग में मनुष्य के व्यवहार और उसके आचरण की सुचिता झलकती है। शब्द अदृश्य होते हुए भी बड़ी सशक्तता के साथ श्रोताओं को प्रभावित करते हैं। शब्दों में मनुष्य के पारिवारिक, सामाजिक संबंधों के निर्माण तथा विध्वंस शक्ति होती है। स्नेहिल शब्दों का प्रभाव औषधि के समान कल्याणकारी होता है। जिस प्रकार से द रोगी व्यक्ति को शांति प्रदान करती है उसी प्रकार शालीनता से प्रयोग किए गए शब्द सुनने वाले के मन में शांति और उल्लास का संचार करते हैं। क्रोधित अवस्था में बोले गए शब्द विष के समान मनुष्य के अंतःकरण को उद्विग्न बना देते हैं। वाणी द्वारा शब्दों का प्रयोग करते हुए विवेक का प्रयोग परम आवश्यक है। विवेकहीन होकर प्रयोग किए गए शब्द मधुर संबंधों को भी नष्ट कर देते हैं। मनुष्य के मन में उतरना तथा मन से उतरना शब्दों के प्रयोग पर ही निर्भर करता है। कड़वे, क्रोध एवं असभ्य शब्दों का प्रयोग शस्त्रों के घाव से भी घातक और भयंकर होता है। शस्त्र का घाव तो कुछ समय के बाद भर जाता है, लेकिन शब्दों द्वारा घायल हुआ मनुष्य का मानस पटल जीवन भर नहीं भर पाता है। शब्दों का प्रभाव बड़ा तीव्र त्वरित और प्रबल होता है। शब्द विष भी हैं और अमृत भी। शब्दों के सांचे में ही मानवीय संबंधों का ताना- बाना निर्मित होता है। माधुर्य एवं सौम्यता से परिपूर्ण शब्दावली में शत्रु को भी मित्र बनाने की क्षमता होती है। शब्द वरदान भी बन जाते हैं और अभिशाप भी। शब्दों से ही मनुष्य का व्यक्तित्व और उसके गुण दोष परिलक्षित होते हैं।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भारत में असमानता एक गहरी समस्या है जो भारत के लिए भी चिंता का विषय है। यह शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और घरेलू निर्णय लेने जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों सहित विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इस अभियान में समाज के हर वर्ग को लैंगिक असमानता के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए शामिल किया जाएगा और लोगों को यह समझाने की कोशिश की जाएगी कि लैंगिक समानता केवल महिलाओं के लिए है। अभियान के तहत विभिन्न माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से तारकेश्वरी श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि देश में एक हाई प्रोफाइल शाही शादी हुई। इसने देश के गरीबों के साथ हो रहे अन्याय और असमानता को उजागर किया। इस शादी पर लाखों करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जबकि देश की एक बड़ी आबादी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रही थी। एक ओर जहां लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना रह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस तरह के शाही विवाह उनकी समस्याओं को और भी गंभीर बना देते हैं। शादी की भव्यता ने गरीबों की दुर्दशा पर सवाल उठाए हैं। यह विडंबना है कि सरकार और उच्च वर्ग अपने आराम पर इतना खर्च कर सकते हैं। जबकि गरीब जनता को उनकी बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं होती हैं, ऐसी घटनाएं समाज में असमानता को बढ़ावा देती हैं और गरीबों के संघर्षों को नजरअंदाज करती हैं।
गोरखपुर जिले की खजनी तहसील क्षेत्र में सिकरीगंज कस्बे के निकट स्थित झौवा गांव में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के तीसरे दिन व्यास पीठ से अयोध्या से पधारे आचार्य चंद्र किशोर महाराज ने उपस्थित श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुए बताया कि मनु महाराज की पुत्री देवहुति जब विवाह योग्य हुई तो उन्होंने भगवान से अच्छे वर की प्रार्थना की, तब भगवान ने उन्हें कर्दम ऋषि से कन्या का विवाह करने के लिए कहा, भगवान ने कर्दम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर उनसे कहा मैं तुमसे प्रसन्न हूं क्योंकि तुम सृष्टि हेतु तप करने जा रहे हो, इसलिए तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। तुम महाराज मनु की पुत्री से विवाह करो महाराज मनु अपनी पत्नी सत्यारूपा और पुत्री देवहूति के साथ कर्दम ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। कर्दम ऋषि ने विवाह से पूर्व शर्त रखी जब देवहुति गर्भवती होंगी तो मैं संन्यास लेकर वन चला जाऊंगा। माता सत्यारूपा ने पुत्री की ओर देखा उनकी मौन स्वीकृति से विवाह किया गया। माता देवहुति द्वारा पति की सेवा की गई जिससे कर्दम ऋषि ने उन्हें वर मांगने के लिए कहा तब माता देवहूति ने कहा कि आप वन को तब जाएं जब मुझे पुत्र प्राप्त हो। कर्दम ऋषि की प्रथम 9 संतानें कन्या हुईं। जिनके नाम कला,अनुसुइया,श्रद्धा, हविर्भू,गति,क्रिया,ख्याति,अरूंधती और शान्ति थे तथा पुत्र का नाम कपिल था। कपिल के रूप में देवहूति के गर्भ से स्वयं भगवान विष्णु अवतरित हुये थे। जिन्होंने अपनी माता को सांख्य शास्त्र का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि ज्ञान चाहे जहां से भी मिले उसे प्राप्त करना चाहिए। भक्ति पूर्ण कथा सुनकर श्रद्धालु श्रोता भाव विभोर हो उठे।संगीतमय कथा में मुख्य यजमान प्रभा देवी, सर्वदमन शुक्ल, कौशल किशोर, विजय कुमार पाण्डेय, चंद्र किशोर, किर्ति त्रिपाठी, हिमांशु शुक्ल, रीना शुक्ला, रितु, शिवम सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रोता उपस्थित रहे।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अर्जुन त्रिपाठी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया की जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि यहां किस शाही शादी की बात हो रही है। देश के करोड़ो गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ाने वाली शादी जिसकी तारीफ में देश का मीडिया भी पूरी निष्पक्षता के साथ लगा हुआ है। कहा जा रहा है कि इससे देश का नाम पूरी दुनियां में रौशन हुआ है। आइए जानते हैं पुरा मामला सदी की एक ऐसी शादी जिसमें सिर्फ 5 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। यह भी एक संयोग ही है कि इसी जुलाई महीने से मोबाइल काॅलिंग और डाटा रिचार्ज की दरों में बढ़ोतरी हो गई है। आज ही राह चलते मुझे एक सज्जन मिले और कहने लगे कि देश में करोड़ों की संख्या में जियो फोन यूजर्स हैं रिचार्ज प्लान के रेट बढ़ा कर बंदा 5 हजार करोड़ रुपए तो महीने भर में ही आप की जेब से निकाल लेगा और आप को पता भी नहीं चलेगा। दुनियां के सबसे ग़रीब देशों की सूची में भारत का स्थान 46 वां है। लेकिन झूठ की फाइलें बनाने में माहिर अपने देश के आंकड़े विश्वसनीय नहीं हो सकते। इसका प्रमाण यह है कि पहले हम विश्व के 10 सबसे गरीब देशों में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय का औसत कितना है पहले यह जान लें। सबसे गरीब देशों की सूची में दसवें स्थान पर है यमन जहां प्रति व्यक्ति 1,84,985 रूपए प्रति वर्ष आय है। नौवें स्थान पर मेडागास्कर देश की 1,66,290 चाड की 1,55,427 लाइबेरिया में 1,57,098 नाइजर में 1,44,563 मलावी में 1,42,892 मोजांबिक में 1,37,878 डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में 1,31,193 सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 95,261 बुरूंडी में 78,250 दक्षिण सूडान में 41,173 रूपए की प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय है। इस लिहाज से आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में गरीबी और बेरोज़गारी का हाल कैसा है। क्योंकि अपने देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनकी वार्षिक आमदनी 40 हजार रुपए वार्षिक भी नहीं है। मजे की बात यह है कि इन सभी सबसे गरीब 10 देशों में सभी देशों की आबादी 5 करोड़ से भी कम है। यहां जिस धनाढ्य व्यक्ति के बेटे की शाही शादी की चर्चा हो रही है उनका जन्म भी 19 अप्रैल 1957 में इन्हीं महागरीब देश में से एक 10 वें स्थान पर मौजूद यमन देश के अदन शहर में हुआ था। उस दौरान उनके पिता यमन में काम कर रहे थे, हालांकि जन्म के कुछ ही दिनों बाद पूरा परिवार भारत वापस लौट आया था।
तहसीलदार कूड़ा भरत और जमौली खुर्द गांव में उपलब्ध कराई नाव गोरखपुर जिले की खजनी तहसील क्षेत्र के कूंड़ा भरत गांव के एक मौजे में निचले इलाके के कुछ घर आमी नदी के बाढ़ के पानी से घिर चुके हैं। वहीं जमौली खुर्द गांव का भी कमोबेश यही हाल है। इन गांवों के समीप से बहने वाली आमी नदी पर पीपे का पुल बना था जो कि पानी के तेज बहाव से बह चुका है। वहीं गांव के कई मजदूर नदी पार करके 7/8 किलोमीटर की दूरी तय कर रोज शहर में मजदूरी करने के लिए आते जाते हैं। वहीं बाढ़ के पानी से घिरे जमौली खुर्द गांव के लिए भी नाव उपलब्ध कराई गई है। दरअसल नदी में आई बाढ़ की समस्या की जानकारी मिलते ही आज गांव में पहुंचे तहसीलदार खजनी कृष्ण गोपाल तिवारी ने दोनों गांव के लिए छोटी डोंगीं नाव उपलब्ध कराई। इस दौरान लेखपाल राजीव रंजन शर्मा ग्राम प्रधान रमेश पासवान सहित बड़ी संख्या में गांव के निवासी मौजूद रहे। समस्या का समाधान मिलने पर लोगों ने तहसील प्रशासन के प्रति आभार जताया। बता दें कि पहाड़ो पर हो रही बारिश और पड़ोसी देश नेपाल से पानी छोड़े जाने के साथ ही इलाके में पिछले कुछ दिनों से हो रही लगातार बारिश के कारण घाघरा राप्ती जैसी बड़ी नदियों के साथ ही उनसे जुड़ी छोटी और सहायक नदियां भी उफान पर हैं। नदियों का पानी लगातार बढ़ने के कारण उनके किनारे बसे गांवों के निचले इलाकों में पानी भर चुका है, गांवों के किसानों के खेत जलमग्न हो गए हैं।
उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोर सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया की शिक्षा का अधिकार, जो महिलाओं के लिए शिक्षित होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, महिलाओं की स्थिति में सुधार और लिंग आधारित भेदभाव और हिंसा को समाप्त करने के लिए आवश्यक है। शिक्षा का अधिकार एक मानव अधिकार है और निरक्षरता को समाप्त करना, शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करना और शिक्षा के सभी स्तरों पर लैंगिक अंतर को समाप्त करना महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाता है। और इस प्रकार महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव और हिंसा को समाप्त करने में योगदान देता है।
उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से राजकिशोर सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि भूमि अधिकार सशक्तिकरण और महिला संरक्षण महिलाओं में जागरूकता और साक्षरता की कमी है उन्हें अधिकारों के बारे में कोई पूरी जानकारी नहीं है और वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने में हिचकिचाती हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि पितृसत्तात्मक परंपराओं के कारण महिलाओं में भय का माहौल है। इसके कारण वे अपनी विरासत के अधिकारों के लिए लड़ना नहीं चाहती, देश में कई उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में महिलाएं स्वेच्छा से अधिकार छोड़ने की प्रथा के कारण पैतृक संपत्ति पर अपना दावा छोड़ देती हैं। इस आभास पर उचित ठहराया जाता है कि उन्हें उनके पिता विवाह में दहेज़ देते हैं लिहाजा बेटों को प्रॉपर्टी देनी है ।