उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अर्जुन त्रिपाठी मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रही हैं कि चुनाव अधिकार निकाय एडीआर के अनुसार, लगभग 40% मौजूदा सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 25% ने हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध के तहत गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए है।एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) ने लोकसभा और राज्यसभा की 776 सीटों में से 763 मौजूदा सांसदों के स्व-शपथ पत्रों का विश्लेषण किया है।चुनावों की बढ़ती लागत और इसमें पैसों की संदिग्ध व्यवस्था होती है। जहां पार्टियां और उम्मीदवार अपने चंदे और ख़र्चों को कम करके दिखाते हैं। इसका मतलब है कि पार्टियां "स्व-वित्तपोषित उम्मीदवारों में दिलचस्पी दिखाती हैं जो पार्टी के सीमित खज़ाने से धन लुटाने की बजाए उल्टा पार्टी को ही 'किराया' देने में योगदान करते हैं। इनमें से कई उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड हैं।तीन स्तर में बंटे भारत के लोकतंत्र में 30 लाख राजनीतिक पद हैं। हर चुनाव में काफी संसाधनों की ज़रूरत पड़ती है। कई पार्टियां निजी मिल्कियत की तरह हैं जिसे प्रभावी हस्तियां या ख़ानदान चला रहे हैं और जिनमें आंतरिक लोकतंत्र की कमी है। ये सभी परिस्थितियां "मोटी जेब वाले अवसरवादी उम्मीदवारों" की मदद करती हैं। अमीर,स्व-वित्तपोषित किस्म के उम्मीदवार नेता पार्टियों को लुभाते ही नहीं हैं, बल्कि इसकी भी संभावना होती है कि वे चुनावी प्रतिस्पर्धा में ज़्यादा मज़बूत हों। दुनिया के ज़्यादातर जगहों में चुनाव लड़ना एक ख़र्चीला काम है। किसी उम्मीदवार की संपत्ति उनके चुनावी जीत को ज़्यादा सुनिश्चित करती है।" राजनीतिक पार्टियां आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए इसलिए नामांकित करती हैं क्योंकि वे जीतते हैं।भारत में अपराध और राजनीति आपस में ऐसे ही गुथे हुए रहेंगे जब तक भारत अपनी चुनावी वित्तपोषण प्रणाली को पारदर्शी नहीं बना देता, राजनीतिक पार्टियां ज़्यादा लोकतांत्रिक नहीं बन जातीं और सरकारें पूरी ईमानदारी से पर्याप्त सेवाएं और न्याय मुहैया नहीं करातीं।