राजनैतिक सिंद्धांत औऱ प्रक्रियाओं में न्याय सबसे पुरानी अवधारणाओं में से एक है, न्याय के सिद्धांत को लेकर तमाम प्रकार की बातें कहीं गई हैं, जिसे लगभग हर दार्शनिक और विद्वान ने अपने समय के अनुसार समझाया है और सभी ने इसके पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद किया है। न्याय को लेकर वर्तमान में भी पूरी दुनिया में आज भी वही विचार हैं, कि किसी भी परिस्थिति में सबको न्याय मिलना चाहिए। इसके उलट भारत में इस समय न्याय के मूल सिद्धामत को खत्म किया जा रहा है। कारण कि यहां न्याय सभी कानूनी प्रक्रियाओं को धता को बताकर एनकाउंटक की बुल्डोजर पर सवार है, जिसमें अपरधियों की जाति और धर्म देखकर न्याय किया जाता है। क्या आपको भी लगता है कि पुलिस को इस तरह की कार्रवाइयां सही हैं और अगर सही हैं तो कितनी सही हैं। आप इस मसले पर क्या सोचते हैं हमें बताइये अपनी राय रिकॉर्ड करके, भले ही इस मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में
समाज कि लड़ाई लड़ने वाले लोगों के आदर्श कितने खोखले और सतही हैं, कि जिसे बनाने में उनकी सालों की मेहनत लगी होती है, उसे यह लोग छोटे से फाएदे के लिए कैसे खत्म करते हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति ने इस तरह काम किया हो, नेताओं द्वारा तो अक्सर ही यह किया जाता रहा है। हरियाणा के ऐसे ही एक नेता के लिए ‘आया राम गया राम का’ जुमला तक बन चुका है। दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं? आपको क्या लगता है कि हमें अपने हक की लड़ाई कैसे लड़नी चाहिए, क्या इसके लिए किसी की जरूरत है जो रास्ता दिखाने का काम करे? आप इस तरह की घटनाओं को किस तरह से देखते हैं, इस मसले पर आप क्या सोचते हैं?
उत्तर प्रदेश राज्य के मऊ जिला से रमेश कुमार यादव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि समाज महिलाओं को भूमि का अधिकार नही देना चाह रहा है। हमारा देश पुरुष प्रधान है और महिलाओं का कद्र नही किया जा रहा है। पुरुष हर जगह अपना वर्चस्व रखना चाहता है। पुरुष महिलाओं को अधिकार या हक़ देना नही चाहते हैं। सरकार को सुनिश्चित करनी चाहिए कि महिलाओं को सम्मान मिले तथा हर जगह पुरुषों के बराबर अधिकार मिले।
उत्तरप्रदेश राज्य के मौ जिला से रमेश कुमार यादव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि महिलाओं को समाज द्वारा भूमि के अधिकार से वंचित किया जाता है। यह वह समाज है जो महिलाओं के नाम पर भूमि लिखने के लिए तैयार नहीं है और न ही अपने अधिकार अर्जित करने के लिए उन्हें अपना सही हिस्सा देने के लिए तैयार है। जैसे एक माँ के अगर एक लड़की और एक लड़का है, तो लड़के का भूमि पर अधिकार है, लेकिन वहीँ लड़कियों को भूमि के अधिकार से वंचित किया जाता है। वह उन्हें यह देने के लिए सहमत हो जाता है कि हम लड़कियों के नाम पर जमीन नहीं देंगे, लड़कियों को जमीन में हिस्सा नहीं दिया जाएगा, लेकिन यह कानूनी रूप से ऐसा नहीं होना चाहिए लड़का या लड़की दोनों को हिस्सा मिलना चाहिए। दोनों को समान अधिकार हैं, अगर लड़की भी चाहे तो वह अपने माता-पिता की भूमि संपत्ति में आधा हिस्सा बन सकती है और समाज को भी इसकी आवश्यकता है। महिलाओं के नाम पर भी भूमि अधिग्रहण किया जाए, उन्हें भी भूमि का एक हिस्सा दिया जाए, यह भूमि स्वामित्व की बात है कि महिलाओं को हर जगह समाज द्वारा रोका जाता है। लड़कियों को बहुत कम लोगों द्वारा पढ़ाया जाता है जबकि लड़कों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाया जाता है।
उत्तर प्रदेश राज्य के मऊ जिला से रमेश कुमार यादव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि आज भी यह देखा जा रहा है कि महिलाएं भूमि अधिकारों से वंचित है। समाज अभी भी महिलाओं के नाम पर भूमि लिखने या भूमि पर अधिकार देने का नाम नहीं ले रहा है। महिलाओं का अधिकार हर जगह पुरुषो के बराबर होना चाहिए लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्य है कि महिलाओं को हर जगह पुरुषों के समान अधिकार होने चाहिए, फिर भी समाज महिलाओं को अधिकार नहीं दे रहा है।
उत्तरप्रदेश राज्य के मऊ जिला से रमेश कुमार यादव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं समाज ने महिलाओं को भूमि से दूर रखा है, वह समाज में पुरुषों और महिलाओं को भूमि का अधिकार नहीं देता है जो असमान है। पुरुष को माता-पिता के हिस्से में भूमि विरासत में मिलती है, लेकिन महिला को पिता के हिस्से या किसी भी प्रकार की भूमि पर कोई अधिकार नहीं दिया जाता है। महिलाओं को अधिकार से वंचित कर दिया गया है।आज की तारीख में भी एक ऐसा समाज है जो महिलाओं को भूमि के अधिकार से वंचित कर रहा है। यदि भूमि की संपत्ति लिखनी है, तो वह व्यक्ति अपना नाम लिख लेता है। महिलाओं के नाम पर कोई नहीं लिखते। सरकार ने कानून के माध्यम से भूमि के अधिकार में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार दिए हैं। भले ही महिलाओं के नाम पर जमीन लिखने के लिए कुछ पैसे माफ किए जाएं, लेकिन फिर भी समाज महिलाओं के नाम पर भूमि नहीं लिखती है, न ही यह कहीं भी भूमि में हिस्सा देती है। ऐसा नहीं होना चाहिए। समान रूप से हकदार पुरुषों और महिलाओं को भूमि का अधिकार होना चाहिए। महिलाओं के नाम पर भी भूमि लिखी जानी चाहिए।
उत्तर प्रदेश राज्य के मऊ जिला से रमेश कुमार यादव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि समाज में भी पुरुषों और महिलाओं के बीच भेदभाव और असमानता है, लेकिन महिलाओं के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होने चाहिए, महिलाएं खेती करती हैं, पुरुष कमाने के लिए बाहर जा रहे हैं, इसलिए देखा जा रहा है कि ज्यादातर महिलाएं खेती करती हैं। वे खेती का काम कर रहे हैं लेकिन समाज उन्हें जमीन के अधिकार से वंचित कर रहा है। लेकिन अगर देखा जाए, तो महिलाएं सबसे अधिक काम करती हैं, हर जगह महिलाओं को समान अधिकार मिलने चाहिए। जो लोग जागरूक नहीं हैं, उन्हें जागरूक किया जाना चाहिए और लोगों को यह समझाया जाना चाहिए कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक काम कर रही हैं।
भूमि पर महिलाओं का अधिकार बहुत कम रहा है, पहले कुछ भी नहीं था। महिलाओं के अधिकारों को धीरे-धीरे सरकार के कानून के तहत लाया गया जिसमें कुछ समाज को पता नहीं था कि महिलाएं अब हर तरफ कुछ न कुछ देखा जा रहा है कि महिला के नाम को भी जमीन की संपत्ति का अधिकार मिल रहा है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पिछड़े वर्गों में यह बहुत देखा जाता है कि लोग महिलाओं को नहीं समझते हैं। आज भी उन्हें डर है कि अगर महिलाओं के नाम का इस्तेमाल किया जाए।
उत्तरप्रदेश राज्य के मऊ जिला से सुरेन्द्रनाथ यादव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि महिला आंदोलन पर आंदोलन होना चाहिए परिवार को एकजुट करने, परिवार चलाने के लिए सामाजिक परिवर्तन हमेशा होता है और परिवार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है कि सभी को भूमि पर समान अधिकार मिलना चाहिए। अगर इस देश में महिलाओं को भूमि पर अधिकार मिलना शुरू हो जाता है, तो एक दिन ऐसा आएगा जब पुरुष प्रधान देश में सभी एक धागे में बंध जायेंगे । यह भी माना जा रहा है कि इससे समाज और देश को भी लाभ होगा क्योंकि ऐसे कई परिवार हैं जहां भूमि अधिकार नहीं मिलने के कारण बेटियों को घर में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए सभी को समान समर्थन मिले, अगर ऐसा होता है तो महिलाओं और पुरुषों में कोई मजबूरी नहीं होनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश राज्य के मऊ जिला से रमेश कुमार यादव मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि महिलाओं को भूमि अधिकारों से वंचित किया गया है।पिता के संपत्ति पर बेटियों का भी अधिकार है। लेकिन धीरे-धीरे इन प्रणालियों को सरकार से लेकर अदालत तक लागू किया गया। यह कानूनी रूप से बाध्य था कि महिलाओं को भूमि पर पुरुषो के समान अधिकार होने चाहिए, लेकिन आज भी उन्हें पूर्ण अधिकारों से वंचित किया जाता है।