इस कार्यक्रम में हम जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते मौसम और असमान बारिश के पैटर्न से उत्पन्न हो रहे जल संकट पर चर्चा करेंगे। "मौसम की मार, पानी की तकरार" से लेकर "धरती प्यासी, आसमान बेपरवाह" जैसे गंभीर मुद्दों पर गहराई से विचार किया जाएगा। हम समझेंगे कि कैसे सूखा और बाढ़ दोनों ही हमारे जल संसाधनों को प्रभावित कर रहे हैं, और इन समस्याओं से निपटने के लिए सामूहिक और व्यक्तिगत स्तर पर क्या समाधान हो सकते हैं। हम आपसे जानना चाहते हैं – आपके इलाक़े में पानी की क्या स्थिति है? क्या आपने कोई जल संरक्षण के उपाय अपनाए हैं? या आप इस दिशा में कोई क़दम उठाने की सोच रहे हैं?

साथियों, आपके यहां पानी के प्रदूषण की जांच कैसे होती है? यानि क्या सरकार ने इसके लिए पंचायत या प्रखंड स्तर पर कोई व्यवस्था की है? अगर आपके क्षेत्र में पानी प्रदूषित है तो प्रशासन ने स्थानीय जनता के लिए क्या किया? जैसे पाइप लाइन बिछाना, पानी साफ करने के लिए दवाओं का वितरण या फिर पानी के टैंकर की सुविधा दी गई? अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो आप कैसे पीने के पानी की सफाई करते हैं? क्या पानी उबालकर पी रहे हैं या फिर उसे साफ करने का कोई और तरीका है? पानी प्रदूषित होने से आपको और परिवार को किस किस तरह की दिक्कतें आ रही हैं?

उत्तरप्रदेश राज्य के मऊ जिला से रमेश कुमार यादव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि बरसात के मौसम में बारिश नहीं होती है। ठंड के मौसम में ठंडक नहीं होती है। गर्मी अपने चरम को पार कर चुकी है। साथियों, जिस तरह से समाज, जो मनुष्य है, बदल रहा है, उसी तरह जलवायु में भी बदलाव हो रहा है। हर व्यक्ति एक भी पेड़ लगाने पर ध्यान नहीं दे रहा है। वायु प्रदूषण अपने चरम पर पहुंच गया है। पहले इतनी गाड़ियाँ और घोड़े नहीं थे। वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण उतना प्रदूषण नहीं था जितना आज है। किसान दित में खेती के लिए अपने खेतों से पेड़-पौधे काट रहे हैं, जहां लोगों ने घर बनाए हैं, वे सड़क के किनारे पेड़ नहीं लगा रहे हैं। और पेड़ भी नहीं बढ़ रहे हैं, जिससे हवा में जलवायु परिवर्तन में अधिक गर्मी दिखाई दे रही है।

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दुबारी के दलित बस्ती के निवासियों ने नाली जाम को लेकर किया प्रदर्शन।

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