उत्तरप्रदेश राज्य के मऊ जिला से रमेश कुमार यादव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि मनरेगा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी अधिनियम मित्रों मनरेगा को भारत में एक कानून के रूप में इस विचार के साथ पेश किया गया था कि गाँव छोड़ने वाले गरीब मजदूर बाहर चले जाएँगे। जो लोग मजदूरी कमाने के लिए पलायन करते हैं, उन्हें पलायन नहीं करना चाहिए, उन्हें गांव में ही रोजगार दिया जाना चाहिए। एक परिवार को 100 दिनों का काम देना चाहिए जिसमें केवल एक परिवार को वर्ष में दस से पंद्रह दिनों के लिए काम मिल रहा हो।

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

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