उत्तर प्रदेश राज्य के बहराइच जिला से राजेश पाठक ने मोबाइल वाणी के माध्यम से प्रधान जी से बातचीत की। बातचीत में उन्होंने बताया कि महिलाओं में पहले से ही थोड़ी जागरूकता आ गई है। क्योंकि गाँव में भी साक्षरता अभियान चलाया गया था, लेकिन बीच में ही बाधित हो गई थी , उससे महिलाये शिक्षित होने लगी थी और सरकार या संविधान द्वारा तय किया कि उन्हें भी पुरुष के बराबर अधिकार होने चाहिए। महिलाये एक बंधन में बंधी हुई है,पति-पत्नी के बीच एक बंधन है, अगर वे अपनी आजीविका कमाने के लिए स्वतंत्र रूप से किसी तरह की नौकरी करती हैं, तो अपने पति से भी पूछकर अब आगे बढ़ सकती हैं और इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है। उसके अंदर बहुत कुछ है और वह भी अपने पति के अनुसार धीरे-धीरे आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है। भूमि का अधिकार मिलने से सामाजिक-आर्थिक दोनों ही रूप से बदलाव देखने को मिलेगा। क्योंकि मान लीजिए कि किसी की माँ और उसके दो बेटे हैं, पहले भूमि का अधिकार माताओं के पास नहीं था, लेकिन संविधान के अनुसार, अब भूमि का अधिकार माँ के पास है। इससे और सरकार द्वारा कई योजनाओं में वंचित होने के बजाय एक लाभार्थी बन जाती है। मान लीजिए कि महिला लंबे समय से अपने ससुराल में रह रहे हैं और पति की मृत्यु हो गई है, अगर उन्हें जमीन का अधिकार मिलता है, तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अगर महिला अपने मायके में रहती है, तो अगर पति-पत्नी के बीच किसी भी तरह का विवाद होता है, तो वहां से वह दूसरी जगह जा सकती है और उस जमीन को बेच सकती है। इसलिए, कुछ दिनों के लिए उस ग्राम सभा में नागरिकता प्राप्त करने के बाद ही, जब उसके पति का उस पर विश्वास हो जाता है, तो वह उसे अपनी पत्नी दोनों के संबंध में जब चाहे जमीन का अधिकार दे सकता है और संविधान के अनुसार दोनों समान होने चाहिए।