कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की स्वीकारोकती के बाद सवाल उठता है, कि भारत की जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? इतनी जल्दबाजी मंजूरी देने के क्या कारण था, क्या उन्होंने किसी दवाब का सामना करना पड़ रहा था, या फिर केवल भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है। जिसके लिए फार्मा कंपनियां अक्सर कटघरे में रहती हैं? मसला केवल कोविशील्ड का नहीं है, फार्मा कंपनियों को लेकर अक्सर शिकायतें आती रहती हैं, उसके बाद भी जांच एजेंसियां कोई ठोस कारवाई क्यों नहीं करती हैं?

मेरा नाम दिनेश विश्वकर्मा है दोनों आंखें अंधी हैं, मैं पुणे जिले से हूं। महाराष्ट्र तालुका हरेली देववाली गाँव आदर्शनगर मैं सर्वेक्षण संख्या पँचिश सड़क संख्या एक में रहता हूँ जिससे मैं बात कर रहा हूँ। और पति और पत्नी दोनों अंधे हैं, यहाँ अवरोध इतना बुरा है कि मैं ठोकर खाता हूँ और गिर जाता हूँ, कोई भी इसके बारे में नहीं सोच रहा है या कोई भी सड़क पर रहने वाला व्यक्ति भी ऐसा कर रहा है। अन्यक का यहाँ की नगरपालिका सेवा से कोई लेना-देना नहीं है, कृपया इस पर मेरा हाथ गिनें, केंद्र सरकार से भी कहें कि इस मार्ग को मेरा मोबाइल नंबर बनाएँ यह संख्या छियानबे पच्चीस चौंसठ है धन्यवाद, बहुत बाद में मुझे उम्मीद है कि यह केंद्र सरकार को बता दिया जाएगा, बहुत-बहुत धन्यवाद।

मेरा नाम दिनेश विश्वकर्मा है दोनों आँखें पैसे को अंधा नहीं देख सकतीं मैं पुणे जिला महाराष्ट्र तालुका हवेली देव उदाली गाँव हूँ मैं देवावली गाँव आदर्शनगर ग्राम पंचायत हूँ, वहाँ से मैं बोल रहा हूँ, यहाँ की समस्याएँ यह हैं कि लंबे समय तक पानी पीने की सुविधा है। नहीं, निगम का पानी दो दिन के लिए आता है, फिर चार दिन के लिए नहीं आता, नल की व्यवस्था नहीं है, हैंडपंप की व्यवस्था नहीं है, मैं अपने पत्नी को नहीं देख सकता और दोनों पानी लाने में सक्षम नहीं हैं मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप मेरी बात सुनें। इस बात पर विचार करें कि नल की व्यवस्था जल्द से जल्द की जानी चाहिए। मेरा मोबाइल नंबर छियानबे, पँचिश, उनसठ है। मैं एक बार फिर पते पर फ़ोन करता हूँ। पुणे जिला महाराष्ट्र तालुका हवेली देवास उदली गाँव आदर्शनगर I ने सर्वेक्षण संख्या पँचिश सड़क संख्या एक से बात की

कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।

एडीआर संस्था ने अपनी एक और रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में राजनीतिक पार्टियों की कमाई और खर्च का उल्लेख है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे राजनीतिक पार्टियां अपने विस्तार और सत्ता में बने रहने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे बड़े सत्ता धारी दल ने बीते वित्तीय वर्ष में बेहिसाब कमाई की और इसी तरह खर्च भी किया। इस रिपोर्ट में 6 पार्टियों की आय और व्यय के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई एम और बीएसपी और एनपीईपी शामिल हैं। दोस्तों, *---- आपको क्या लगता है, कि चुनाव लडने पर केवल राजनीतिक दलों की महत्ता कितनी जरूरी है, या फिर आम आदमी की भूमिका भी इसमें होनी चाहिए? *---- चुनाव आयोग द्वारा लगाई गई खर्च की सीमा के दायेंरें में राजनीतिक दलों को भी लाना चाहिए? *---- सक्रिय लोकतंत्र में आम जनता को केवल वोट देने तक ही क्यों महदूद रखा जाए?

तमाम गैर सरकारी रिपोर्टों के अनुसार इस समय देश में बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर है। वहीं सरकारें हर छोटी मोटी भर्ती प्रक्रिया में सफल हुए उम्मीदवारों को नियुक्त पत्र देने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन कर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों को भी आमंत्रित कर रही हैं, जिससे की बताया जा सके कि युवाओं को रोजगार उनकी पार्टी की सरकार होने की वजह से मिल रहा है।

संभल योजना का लाभ पाने के लिए चार साल से भटक रहा है मृतक का परिवार मोबाइल वाणी पर बताई अपनी व्यथा