एकी कृत बाल सुरक्षा

सर्दी का मौसम

किशोरावस्था मे देखभाल

उत्तरप्रदेश राज्य के साहरनपुर जिला से संवाददाता शालिनी श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि स्वस्थ जीवन शैली का आजीवन प्रभाव पड़ता है जितनी कम उम्र में स्वस्थ जीवन शैली को अपनाया जाता है जीवन पर उतना ही अच्छा प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ जीवनशैली से समुदाय के स्वस्थ सूचकांकों में सुधार होता है,स्वस्थ जीवन शैली के अंतर्गत स्वच्छ आदतें अपनाकर स्वयं को निरोगी रखना चाहिए.उनका कहना है कि समुदाय को ऐसी बातों के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे स्वास्थ्य संबंधी व्यवहारों में परिवर्तन लाया जा सके और जटिलताओं से बचा जा सके।

बाल सुरक्षा योजना

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती जिले से शालिनी श्रीवास्तव मोबाइल वाणी के माध्यम से बच्चों की शिक्षा के अधिकार के बारे में जानकारी देते हुए यह कहती हैं कि भारत में शिक्षा का बड़ा महत्व एवं जीवन का आधार माना गया है अर्थात शिक्षा ही जीवन है। उन्होंने बताया कि देश के आधुनिक या विकसित होने का प्रमाण उस देश के नागरिकों में स्थित है। उन्हें जीवन में सही तरीके से जीने की शिक्षा प्राप्त है। उन्होंने यह भी बताया कि आधुनिक समय में शिक्षा को ही राष्ट्रीय समाज की प्रगति का सूचक समझा जाता है और हमारे देश में आजादी के बाद शिक्षा के महत्व को समझते हुए सभी को शिक्षा की दिशा में काम करते हुए इसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 तक 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है। साथ ही सभी को निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से राज्य केंद्रीय स्तर पर शिक्षक पात्रता परीक्षा का तत्वाधान किया गया है, जो युवक आगे बढ़ कर एक शिक्षक बनना चाहता है, उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य रूप से उत्तीर्ण करनी होती है शिक्षा के अधिकार की विशेषताएं देश के सभी बच्चों को जो 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के हैं, उन्हें निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाना किसी भी बालक को किसी शुल्क अथवा शिक्षा पर खर्च के आधार पर शिक्षा देने से वंचित नहीं किया जा सकता है। यदि 14 वर्ष से कम आयु का बच्चा नियमित रूप से विद्यालय कभी नहीं गया यदि किसी क्षेत्र में कोई विद्यालय नहीं है, तो राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व है कि वे 3 वर्ष की अवधि तक कोई विद्यालय का निर्माण सुनिश्चित करें परंतु किसी भी स्टूडेंट को किसी भी कक्षा में प्रवेश दिया जा सके

उत्तरप्रदेश राज्य के सहारनपुर जिला से शालिनी श्रीवास्तव उत्तरप्रदेश मोबाइल वाणी के माध्यम से नवजात शिशु के पोषण के बारे में जानकारी देते हुए यह कहती हैं कि 6 माह से कम उम्र के लगभग आधे बच्चों को ही स्तनपान कराया जाता है। उन्होंने यह कहा कि छह माह तक केवल बच्चे को मां का दूध पिलाया जा सकता है। क्योकि मां के दूध में सभी पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं और इसमें छह माह तक बच्चे की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी भी होता है। जिन शिशुओं को छह माह तक केवल स्तनपान कराया जाता है, उस शिशु को किसी भी दूसरी चीज की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने यह भी कहा कि जन्म के तुरंत बाद निश्चित तौर पर प्रसव के 1 घंटे के अंदर जल्द से जल्द शुरू कराने से नवजात शिशु को मां का पहला दूध कोलोस्ट्रम मिलता है, जो शिशु को बीमारियों से लड़ने में सहायता करता है और पहला गाढ़ा पीला दूध नवजात शिशु को पोषण देता है।

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती जिला से शालिनी श्रीवास्तव उत्तरप्रदेश मोबाइल वाणी के माध्यम से छोटे बच्चों की देखभाल के बारे में जानकारी देते हुए यह कहती हैं कि छोटे बच्चों की गृह आधारित देखभाल कार्यक्रम का उद्देश्य बाल मृत्यु और बीमारियों को कम करना, छोटे बच्चों की पोषण संबंधी स्थिति में सुधार लाना, छोटे बच्चों की सही वृद्धि और आरंभिक बाल विकास को सुरक्षित करना, गृह आधारित भ्रमण से समस्याओं की जल्दी पहचान करने और उचित कार्रवाई करने में परिवारों की सहायता होती है। उन्होंने बताया कि गृह आधारित उचित देखभाल पद्धतियों के माध्यम से स्वास्थ्य संस्थानों में जाने में माध्यम से किया जा सकता है और गृह आधारित अतिरिक्त भ्रमण से जीवन के पहले 15 माह के दौरान बच्चों और माता-पिता देखभाल कर्ताओं के साथ संपर्क बढ़ता है, जिससे निम्नलिखित उद्देश अवसर मिलते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन के पहले 6 माह के दौरान केवल स्तनपान को बढ़ावा मिलेगा, 6 माह पूर्व हो जाने पर उसके आगे बच्चों को समय पर पर्याप्त और उपयुक्त पूरक आहार दिए जाने पर जोर मिलेगा, अपने बच्चों में पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की पहचान एवं प्रबंधन के लिए परम परामर्श एवं सहायता के माध्यम से माता और देखभाल कर्ताओं की छमता का निर्माण होगा, मातृ एवं बाल संरक्षण कार्ड की सहायता से बच्चों की वृद्धि एवं विकास में होने वाली देरी की जल्दी पहचान होगी, बचपन की सामान्य बीमारियों की रोकथाम और उसके प्रबंधन में मदद मिलेगी, जटिलताओं के उपचार के लिए बीमार बच्चों को स्वास्थ्य संस्थानों में शीघ्र भेजना सुनिश्चित होगा। साथ ही स्वास्थ्य संस्थानों से घर वापस आने वाले बीमार बच्चों की दवाई का अनुपालन एवं उनकी देखभाल के लिए उनका फ़ॉलोअप किया जा सकेगा

उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती जिला से शालिनी श्रीवास्तव उत्तरप्रदेश मोबाइल वाणी के माध्यम से नवजात शिशु की सुरक्षा के बारे में जानकारी देते हुए यह कहती हैं कि नवजात शिशु मृत्यु दर का 80% से अधिक मुख्य रूप से तीन कारणों समय पूर्व प्रसव और प्रसव के दौरान जटिलता और नवजात संक्रमण की वजह से होता है जिसमें से तीन चौथाई मृत्यु जीवन के प्रथम सप्ताह में होती है। उन्होंने बताया कि नवजात शिशुओं की नियमित निगरानी से इस परिस्थिति को बदला जा सकता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत नवजात शिशुओं के लिए रास्ता आधारित एवं गृह आधारित देखभाल के कार्यक्रम शिशु की देखभाल की निरंतरता को संस्था से लेकर समाज भर एवं पूरा करने के लिए शुरू किए गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जन्म के समय कम वजन समय के पूर्व पैदा हुए नवजात शिशु अन्य शिशुओं की अपेक्षा कमजोर होते हैं, इनमें मृत्यु की संभावना अधिक होती है और जन्म के समय सामान्य वजन के शिशुओं की तुलना में कम वजन के भविष्य में भी कम वजन रहने छोटे कद का होने एवं संचारी रोगों के होने की संभावना रहती है। साथ ही यह भी बताया कि यदि शिशु अवस्था में शारीरिक वृद्धि प्रभावित होती है संज्ञानात्मक विकास में देरी में भी कमजोरी भी बनी रहती है होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी लाने हेतु प्रदेश में समुद्र पर प्रश्नों प्रांत एवं नवजात शिशु की देखभाल के लिए होम विद न्यूबॉर्न केयर कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसमें कि घर घर भ्रमण करके नवजात शिशु एवं धात्री माताओं के स्वास्थ्य की घरेलू देखभाल कर स्वस्थ एवं सुरक्षित रखने की व्यवस्था की जाती है इसका मुख्य सुविधा उपलब्ध कराना एवं जटिलताओं से बचाना समय पूर्व जन्म लेने वाले और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर समुचित देखभाल एवं संघर्ष करना नवजात शिशु की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल एवं संवर्धन करना परिवार को आदर्श स्वास्थ्य व्यवहार अपनाने हेतु प्रेरित एवं सहयोग करना तथा मां के अंदर अपने नवजात शिशु के स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता विकसित करना

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