मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

बिहार राज्य के गया जिला के मगध प्रखंड से मोबाइल वाणी संवाददाता सुनील मांझी ने एक श्रोता साक्षात्कार लिया जिसमें उन्होंने बताया की उन्हें रोज़गार नहीं मिल रहा है। अगर कहीं बहार जाते हैं तो बच्चों को पढ़ाने में परेशानी होती है। इस खबर को सुनने के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।

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