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सरकार हर बार लड़कियों को शिक्षा में प्रोत्साहित करने के लिए अलग-अलग योजनाएं लाती है, लेकिन सच्चाई यही है कि इन योजनाओं से बड़ी संख्या में लड़कियां दूर रह जाती हैं। कई बार लड़कियाँ इस प्रोत्साहन से स्कूल की दहलीज़ तक तो पहुंच जाती है लेकिन पढ़ाई पूरी कर पाना उनके लिए किसी जंग से कम नहीं होती क्योंकि लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने और पढ़ाई करने के लिए खुद अपनी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ती है। लड़कियों के सपनों के बीच बहुत सारी मुश्किलें है जो सामाजिक- सांस्कृतिक ,आर्थिक एवं अन्य कारकों से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ हैं . लेकिन जब हम गाँव की लड़कियों और साथ ही, जब जातिगत विश्लेषण करेंगें तो ग्रामीण क्षेत्रों की दलित-मज़दूर परिवारों से आने वाली लड़कियों की भागीदारी न के बराबर पाएंगे। तब तक आप हमें बताइए कि * -------आपके गाँव में या समाज में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति क्या है ? * -------क्या सच में हमारे देश की लड़कियाँ पढ़ाई के मामले में आजाद है या अभी भी आजादी लेने की होड़ बाकी है ? * -------साथ ही लड़कियाँ को आगे पढ़ाने और उन्हें बढ़ाने को लेकर हमे किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ?

गया में जेडीयू पार्टी का बैठक का अयोजन किया गया। उसमें मुख्य अतिथिअनुसूचित जाति कल्याण मंत्री उपास्तित थे और जिला अध्यक्ष और सतेन्द्र गौतम मांझी के साथ अन्य कार्यकर्ता भी उपस्थित थे

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बिहार राज्य के गया जिला के फतेहपुर पंचायत से मोबाइल वाणी संवाददाता सुनील मांझी ने दिनेश मांझी से साक्षात्कार लिया जिसमें उन्होंने जानकारी दी उनके गांव में नल जल लगा हुआ है पर पानी नहीं मिलता है। इसके लिए उन्होंने बीडीओ साहब को आवेदन दिया है पर कोई करवाई नहीं हुई है। ज़्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

दलित परिवार के लोगों के पास रहने के लिए जमीन नहीं है। जिसके कारण उन्हें अक्सर कुछ लोग आ कर परेशान करते हैं। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

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