प्लॉट- 6, सेक्टर- 3, आईएमटी, मानेसर स्थित ओमैक्स ऑटो फ़ैक्ट्री के श्रमिक जब 28 मई, 2018 को सुबह ड्यूटी के लिए पहुँचे, तो उन्हें गेट पर नोटिस के साथ पुलिस तैनात मिली और 190 स्थायी श्रमिकों की नौकरी समाप्त कर दी गयी। 1983 में स्थापित ओमैक्स ऑटो कम्पनी की सम्पूर्ण भारत में 9 फैक्ट्रियाँ हैं। कम्पनी की बिनौला फ़ैक्ट्री से 300 स्थायी श्रमिकों की नौकरी 11 महीने पहले समाप्त कर उत्पादन बन्द कर दिया गया था , जबकि रेलवे डिविज़न में काम जारी था। कम्पनी की धारूहेड़ा फ़ैक्ट्री में भी 7 महीने पहले नए यूनियन लीडर और 300 स्थायी श्रमिकों की नौकरी समाप्त कर दी गयी और पुराने यूनियन लीडर निलम्बित कर दिए गए थे, लेकिन 30-40 स्थायी श्रमिक फ़ैक्ट्री में आते-जाते रहे थे और उन्हें एक महीने बाद हिसाब दे दिया गया। धारूहेड़ा फ़ैक्ट्री में ठेकेदार कम्पनियों के ज़रिए रखे श्रमिकों और छः महीने वाले अस्थायी श्रमिकों द्वारा उत्पादन जारी रखा गया। इधर तेइस मार्च, 2018 को कम्पनी ने आईएमटी, मानेसर में फ़ैक्ट्री बन्द करने और श्रमिकों की की नौकरी समाप्त करने का आवेदन श्रम विभाग में दिया था, जिसका यूनियन ने विरोध किया था। इसके बाद गुड़गाँव से मामला चंडीगढ़ भेज दिया गया, तब श्रमायुक्त ने श्रमिकों को कम्पनी की अन्य फैक्ट्रियों में भेजने की बात की। इसके बाद शनिवार, छब्बीस मई को राज्यपाल का पत्र यूनियन को मिला, जिसमें फ़ैक्ट्री चलाने तथा छः महीने में श्रम विभाग, गुड़गाँव में समझौता करने को कहा था। 2016 में ओमैक्स ऑटो की मानेसर स्थित फ़ैक्ट्री में हीरो बाइक के बॉडी फ़्रेम बनाने वाले श्रमिकों में से 900 को ठेकेदार कम्पनियों के ज़रिए रखा गया था। इन 900श्रमिकों ने फ़रवरी, 2016 में मिलकर कदम उठाए थे। वर्षों से काम कर रहे जिन 175 श्रमिकों को कम्पनी अस्थायी कहती थी, उनके क़ानूनन स्थायी श्रमिक होने के बाद भी यूनियन ने उन्हें सदस्य नहीं बनाया। जबकि कम्पनी प्रबंधन से समझौता करने का दबाव डालने के लिए इन 900 तथा 175 श्रमिकों का इस्तेमाल यूनियन ज़रूर करती रही। नवम्बर, 2016 में 12-12 घंटे की जगह फ़ैक्ट्री में 8-8 घंटे की दो शिफ़्ट कर दी गयीं और वेल्ड शॉप से 50 अस्थायी श्रमिक निकाल दिए गए और फ़रवरी, 2017 से कम्पनी प्रबंधन घाटे की बात करने लगा। इधर अस्थायी श्रमिकों के पीएफ़ खाते में भी गड़बड़ी थी। दीपावली, 2017 से स्टाफ़ वाले 175 श्रमिकों को निकालने की बात करने लगे थे और 1 मार्च, 2018 को नोटिस देकर जब उन 175 श्रमिकों को निकाल दिया गया, तब यूनियन चुप रही और फिर 28 मई को यूनियन सदस्यों की भी नौकरी समाप्त कर दी गयी।तो श्रोताओं! कैसी लगी आज की जानकारी? हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से अगर आपके दैनिक कामकाजी जीवन में कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा हो, आपको कुछ करने की प्रेरणा मिलती हो और आप अपने कार्यस्थल पर हो रहे श्रमिक-विरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ संगठित होकर आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित होते हैं, तो आप अपना अनुभव हमारे साथ ज़रूर साझा करें अपने मोबाइल में नम्बर तीन दबाकर, धन्यवाद।

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आज हम बात करेंगे आपसे जुलाई, 2009 में बी 134, ओखला, फ़ेज़ 1, दिल्ली स्थित वीयरवेल कम्पनी में हो रहे श्रमिकविरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ श्रमिकों के संगठित विरोध और काम बन्द करने की धमकी के बाद घुटनों पर आए कम्पनी-प्रबंधन के द्वारा सुलहनामे पर तैयार होने की..ऑडियो पर क्लिक कर सुनें पूरी खबर..

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आज हम बात करेंगे आपसे फ़रीदाबाद स्थित बोनी पोलिमर्स में हो रहे श्रमिकविरोधी कृत्यों के ख़िलाफ़ अकेले आवाज़ बुलंद कर कम्पनी-प्रबंधन को झुकने पर मजबूर कर देने वाली एक महिला श्रमिक की संघर्षपूर्ण जीत की.. सुनने के लिए क्लिक करें ऑडियो पर..

आज हम बात करेंगे आपसे मानेसर के मारूति सुज़ुकी अलाइड निप्पोन में जनवरी 2012 में आग लगने से जले श्रमिक की मज़दूरी और इलाज सहित अन्य सुविधाओं के भुगतान हेतु साथी श्रमिकों के सफल एकजुट प्रयास की। अलाइड निप्पोन में ठेकेदार के द्वारा नियुक्त एक श्रमिक के आग लगने के कारण जल जाने पर कम्पनी ने उसे अलियर के सपना नर्सिंग होम में इलाज हेतु भर्ती कराकर डॉक्टर से शाम को डिस्चार्ज करने के लिए कह दिया। इसपर जले श्रमिक ने अलाइड निप्पोन के अपने साथी श्रमिक से उसे इसी नर्सिंग होम में रखने को कहा। अगले दिन मारूति सुज़ुकी प्लांट में ठेकेदार के द्वारा नियुक्त दस-पंद्रह श्रमिक उसे देखने गए और डॉक्टर से कहा कि इलाज करो, अगर कम्पनी पैसे नहीं देगी तो हम देंगे। काम के दौरान जले श्रमिक को देखने अगले दो दिनों तक कम्पनी का कोई अधिकारी नहीं आया, बस साथी श्रमिक आते रहे। अलाइड निप्पोन के प्रोडक्शन मैनेजर को कॉल करने पर उसने झूठ बोल दिया की किसी श्रमिक के जलने की उसे कोई जानकारी नहीं है। अगले दिन डॉक्टर ने पैसे नहीं देने पर ईएसआई भेजने की बात कही। इतना सुनते ही श्रमिक साथियों के द्वारा किए गए फ़ोन काल्स के परिणामस्वरूप आधे घंटे के भीतर ही मारूति सुज़ुकी के प्रेस शॉप, असेम्बली, पेंट शाप, वेल्ड शाप आदि विभागों तथा सुज़ुकी पावर ट्रेन के अलियर व ढाणा में रह रहे दकेदारों के द्वारा नियुक्त सत्तर-अस्सी श्रमिक नर्सिंग होम पर एकत्र हो कर वहाँ से अलाइड निप्पोन फ़ैक्ट्री पहुँचे, लेकिन कम्पनी प्रबंधक ने श्रमिकों से बात करने से भी मना कर दिया। लगभग आधे घंटे बाद जले श्रमिक की नियुक्ति करने वाली ठेकेदार कम्पनी का सुपरवाइज़र आया और उससे बातचीत में तय हुआ कि नर्सिंग होम के खर्च और उपचार के दौरान बैठे दिनों के पैसे उस घायल श्रमिक को दिए जाएँगे तथा उसके घरवालों को कॉल कर बुलाया जाएगा। अगले दिन जले श्रमिक को सेक्टर तीन स्थित ईएसआई अस्पताल ले जाकर भर्ती किया गया। वहाँ ईएसआई कार्ड माँगने पर सुपरवाइज़र ने दो घंटे का समय माँगा और 12/12/2010 से काम कर रहे उस श्रमिक ईएसआई कार्ड 16/01/2012 को बनवाया और उसकी दुर्घटना रिपोर्ट भी भरी। इसके तुरंत बाद ही घायल श्रमिक के पिता भी गाँव से आ गए। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अलाइड निप्पोन फ़ैक्ट्री में जला श्रमिक दुर्गेश बांसगांव में किराए पर रहता था तथा मारूति सुज़ुकी और सुज़ुकी पावरट्रेन के इस संदर्भ में कदम उठाने वाले श्रमिक अलियर तथा ढाणा में किराए पर रहते थे और उनमें से किसी का भी दुर्गेश से कोई परिचय नहीं था। लेकिन पिछले छः महीनों के दौरान कम्पनी-प्रबंधन के द्वारा श्रमिक-हितों को नुक़सान पहुँचाने वाले लिए गए कई निर्णयों ने श्रमिकों की भावनाओं को उभारा और उनमें संगठन की प्रवृत्ति को प्रेरित किया, जिसका सुखद परिणाम हमें दुर्गेश के साथ काम के दौरान हुई दुर्घटना के सम्बंध में देखने को मिला और इससे ये साबित हो गया कि श्रमिक अगर संगठित हो जाएँ तो कोई भी ताक़त उनकी संगठन शक्ति के आगे कमजोर साबित होती है और वे अपना हक़ प्राप्त कर सकते हैं। श्रोताओं! कैसी लगी आज की जानकारी? आप अपना अनुभव हमारे साथ ज़रूर साझा करें, अपने मोबाइल में नम्बर तीन दबाकर, धन्यवाद।