बात है 2007 की , फरीदाबाद में लखानी रबड़ उद्योग में अनेक प्रकार की और विभिन्न नाप की 70 हजार जोड़ी चप्पल प्रतिदिन बनती थी । उस समय मोल्डिंग विभाग में सादे आठ घण्टे की तीन शिफ्ट होती थी । डिब्बे बनाने वालों की साढ़े बारह घण्टे की एक शिफ्ट लगती थी और हवाई चप्पल बनाने वालों की सुबह 8 से रात के साढ़े 10 बजे तक की एक शिफ्ट होती थी। कम्पनी 15 घण्टे में भी एक कप चाय तक नहीं देती थी । ‘‘लखानी रबड़ में उस समय 250 स्थाई और 250 कैजुअल वरकर थे । स्थाई और कैजुअलों की तनखा में 200 रुपये का फर्क था - अप्रैल की तनखा में स्थाई मजदूरों के 200 रुपये और बढा दिये गए थे । कैजुअलों का 6 महीने से ब्रेक था पर ऐसे कैजुअल भी हैं जो महीने.भर के दिखाये ब्रेक के दौरान भी फैक्ट्री में काम करते रहे और उस दौरान उन्हें उनकी पूरी तनखा दी जाती रही - ई.एस.आई. व पी.एफ. की राशि नहीं काटी जाती थी। ‘मोल्डिंग विभाग में तो पूरा काम ही गन्दा होता है - पाउडर उड़ता है, रबड़ पकती है। लाइनों पर चप्पल में सुराख करने वाला काम भी गन्दा है। गर्मियों में तो मोल्डिंग में बहुत ही बुरा हाल हो जाता है - जिसके कारण काफी मजदूरों को साँस की तकलीफें और टी.बी. की बीमारी थी .फैक्ट्री में कई लोगो के हाथ कट जाते थे और नियोक्ता ,एक्सीडेन्ट रिपोर्ट भर कर उन्हें ई.एस.आई. अस्पताल भेज दिया करते थे । सैक्टर.6 स्थित फैक्ट्री में वाशरूम इतनी गन्दी रहती थी कि श्रमिकों को फैक्ट्री के बाहर जाना पड़ता था। साथियों,इसी तरह आज भी कई कम्पनी हम श्रमिकों के साथ अन्याय करती आ रही है और हम न्याय के लिए कुछ कदम नहीं उठा पाते,क्योंकि हम कहीं न कहीं सोचते है कि हमें काम से निकाल ना दें। तो साथियों वक्त है इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की,हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं और आगे भी हम अपने हक़ और अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।साथियों,तो कैसी ले आपको आज की कड़ी?अगर आप भी अपनी कम्पनी की कहानी साझा करना चाहते है तो अभी दबाएं अपने फ़ोन में नंबर 3 .