बात है दिसम्बर 2007 की। दिल्ली, नोएडा, गुड़गाँव, फरीदाबाद में काम करते जिन मजदूरों पर कानूनी रूप से ई.एस.आई. के प्रावधान लागू होते थे, उन में से 70-75 प्रतिशत पर कम्पनियाँ ईएसआई लागू नहीं करती थी ।जिन मजदूरों को कैजुअल अथवा ठेकेदारों के जरिये रखे जाते थे ,उन में नब्बे प्रतिशत की ई.एस.आई. नहीं होती थी। ऐसे में फैक्ट्री में ज्यादा चोट लगने पर मजदूर को निजी चिकित्सालय ले जाना सामान्य था ।चोट लगने पर मजदूरों को पहचाने से कम्पनी साफ़ माना कर देती थी। साथियों,इसलिये घायल होने पर हो सके तो ई.एस.आई. अस्पताल अवश्य जायें - अगर आपके पास ई.एस.आई. कार्ड नहीं है तो आप कैजुअलटी में भी जा सकते हैं। कम्पनी अगर एक्सीडेन्ट रिपोर्ट भरने से माना करती है तो ई. एस.आई. डाॅक्टर से ज़रूर भरवायें। एक्सीडेन्ट रिपोर्ट की फोटो काॅपी अवश्य लें और उस रिपोर्ट में कम्पनी और ठेकेदार आदि वाली गड़बड़ियों को देखें तथा कर्मचारी राज्य बीमा निगम अधिकारियों को लिखित में शिकायतें करें। ई. एस.आई. डाॅक्टर द्वारा फिटनेस दिये जाने पर फैक्ट्री में ड्युटी के लिये जायें। ड्युटी पर नहीं लेना कानून अनुसार अपराध है। इसकी शिकायत ई.एस.आई. लोकल तथा क्षेत्राीय कार्यालयों में लिखित में तुरन्त करें। कार्यस्थलों की हालात के कारण अनेक पेशेगत बीमारियों की भरमार है, मजदूर बड़े पैमाने पर इन से ग्रस्त होते हैं। साथ ही सेवा निवृति के बाद भी तन और मन के इन पेशेगत रोगों की क्षतिपूर्ति तथा उपचार की जिम्मेदारी कम्पनियों व ई.एस.आई. की होती है। तो साथियों,कैसी लगी आपको आज की यह जानकारी ? अगर आपके पास ई. एस. आई. से सम्बंधित कोई भी शिकायत है तो साझा मंच पर अपनी बात ज़रूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर तीन दबाकर। साथ ही सही जानकारी प्राप्त कर इसके खिलाफ अपना कदम उठाना ना भूलें ।