केंद्र सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में कोरोना महामारी को शताब्दी में एक बार होने वाली त्रासदी कहकर पुकारा है. हालांकि, सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा है कि लॉकडाउन के दौरान हुए देश के सबसे बड़े अंतर्राज्यीय पलायन के बारे में उनके पास कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है. लंबे लॉकडाउन के कारण अंतर्राज्यीय स्तर पर पलायन को विवश हुए असंगठित मजदूरों, उनके नौकरी जाने या उनके रहने के ठिकानों के खत्म होने की सरकार की जानकारी बहुत ही कम हैं. इससे पहले सरकार ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के पलायन की कुल संख्या एक करोड़ से ज्यादा बताई थी. साथ ही लॉकडाउन के दौरान मरने वाले मजदूरों की संख्या पर अनभिज्ञता भी जाहिर की थी. कोविड-19 ने देशभर में असंगठित मजदूरों को लॉकडाउन ने बुरी तरह से प्रभावित किया. इनकी संख्या अखिल भारतीय स्तर पर शहरी कामगारों में करीब 11.2 फीसदी है. लॉकडाउन के दौरान एक बड़ी संख्या में इन मजदूरों को पलायन के लिए विवश होना पड़ा. आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022 के मुताबिक 1 मई 2020 से अगस्त 2020 के बीच 63.19 लाख प्रवासी मजदूरों ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिए यात्रा की. लॉकडाउन के कारण कितने प्रवासियों की नौकरी गई और उनका सुविधाएं खत्म हुई और उन्हें घर को लौटना पड़ा, इस मुद्दे पर सरकार को कोई जानकारी नहीं है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत मुफ्त अनाज वितरण आपूर्ति का प्रावधान प्रवासी मजदूरों को पहले मई-जून यानी दो महीनों के लिए किया गया. मनरेगा और ग्रामीण कल्याण रोजगार योजना के जरिए मजदूरों को रोजगार दिया गया है. साथियों, हम आपसे जानना चाहते हैं कि सरकार के इन दावों में कितना सच है? क्या वाकई आप तक रोजगार, नि:शुल्क राशन आदि पहुंचा? स्थानीय प्रशासन ने मजदूरों की मदद के लिए कितने प्रयास किए? लॉकडाउन के बाद अब मजदूरों को रोजगार मिलने में किस तरह की परेशानियां आ रही हैं? अपनी राय हमारे साथ साझा करें, फोन में नम्बर 3 दबाकर.