बीते दो सालों में महामारी के चलते हमने भारत के कोने-कोने में ऐसे ही मजदूरों का एक विशाल पलायन देखा. मजदूरों की स्थिति ने उस सच्चाई की परत को उखाड़ दिया जो शायद किसी चोट पर सूख कर जमी हुई खाल की तरह अंदरूनी चोट को छिपा रही थी.